1.
किसी व्यक्ति का स्वभाव खराब हो तो जब वह
गहरी नींद में सोया हो, तब उसके श्वासों के सामने अपने मुख करके
धीरे से कहिएं क़ी तुम्हारा स्वभाव बड़ा अच्छा है, तुम्हारे में क्रोध
नहीं है,
आदि। कुछ दिन ऐसा करने से उसका स्वभाव सुधरने लगेगा।
2.
अगर बेटे का स्वभाव ठीक नहीं हो तो उसे अपना
बेटा न मानकर, उसमें सर्वदा अपनी ममता छोड़कर उसे सच्चे ह्रदय से भगवान् के अर्पण कर दे, उसे
भगवान् का ही मान ले तो उसका स्वभाव सुधर जाएगा।
3.
गाय की सेवा करने से सब कामनाएं सिद्ध होती है।
गाय को सहलाने से, उसकी पीठ आदि पर हाथ फेरने से गाय प्रसन्न होती है। गाय के प्रसन्न होने
पर साधारण रोगों क़ी तो बात ही क्या है, बड़े-बड़े असाध्य रोग भी मिट जाते हैं।
लगभग बारह महीने तक करके देखना चाहिए।
4.
गाय के दूध, घी, गोबर-गोमूत्र
आदि में जीवनी-शक्ति रहती है। गाय के घी के दीपक से शांति मिलती है। गाय का घी
लेने से विषैले तथा नशीली बस्तु का असर नस्त हो जाता है। परन्तु बूढी अशुद्ध होने
से अच्छी चीज भे बुरी लगती है, गाय के घी से भी दुर्गन्ध आती है।
5.
बूढी गाय का मूत्र तेज होता है और आँतों में घाव
कर देता है। परन्तु दूध पीने वाली बछडी का मूत्र सौम्य होता है; अतः
वाही लेना चाहिए।
6.
कहीं जाते समय रास्ते में गाय आ जाए तो उसे अपनी
दाहिनी तरफ करके निकलना चाहिए। दाहिनी तरफ करे से उसकी परिक्रमा हो जाती है।
7.
रोगी व्यक्ति को भगवान् का स्मरण कराना सबसे
बड़ी और सच्ची सेवा है। अचिक बीमार व्यक्ति को सांसारिक लाभ-हानि क़ी बातें नहीं
सुनानी चाहिए। छोटे बच्चों को उसके पासा नहीं ले जाना चाहिए; क्योकि
बच्चों में स्नेह अधिक होने से उसकी वृत्ति उनमें चली जायेगे।
8.
रोगी व्यक्ति कुछ भी खा- पी लेना सके तो गेहूं
आदि को अग्नि में डालर उसका धुंआ देना चाहिए। उस धुंए से रोगी को पुष्टि मिलती है।
9.
भगवनाम अशुद्ध अवस्था में भी लेना चाहिए। कारण
क़ी बिमारी में प्राय: अशुधि रहती है। यदि नामे लिये बिना मर गए तो क्या दशा होगी? क्या
अशुद्ध अवस्था में श्वास नहीं लेते? नामजप तो श्वास से भी अधिक मूल्यवान है।
10.
मरणासन्न व्यक्ति के सिरहाने गीताजी रखें।
डाह-संस्कार के समय उस गीताजी को गंगाजी में बहा दे, जलायें नहीं।
11.
यदि रोगी के मस्तक पर लगाया चन्दन जल्दी सूख जाय
तो समझें क़ी ये जल्दी मरने वाला नहीं है। मृत्यु के समीप पहुंचे व्यक्ति उसके
मस्तक क़ी गर्मी चली जाती है, मस्तक ठंडा हो जाता है।
12.
शव के दाह-संस्कार के समय मृतक के गले में पड़ी
तुलसी क़ी माला न निकालें, पर गीताजी हो तो निकाल देनी चाहिए।
परमश्रद्धेय स्वामी श्रीरामसुखदासजी
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