1.
अस्पताल में मरने वाले क़ी प्राय: सदगति
नहीं होती। अतः मरनासन व्यक्ति यदी अस्पताल में हो तो उसे घर ले आना चाहिए।
2.
श्राद्ध आदि कर्म भारतीय तिथि के अनुसार करने
चाहिए,
अंग्रेजी तारीख के अनुसार नहीं। (भारत आजाद हो गया, अपर
भीतर से गुलामी नहीं गयी। लोग अंग्रेजी दिनाक तो जानते हैं, पर
तिथि जानते ही अन्हीं!)
3.
किसी व्यक्ति क़ी विदेश में मृत्यु हो जाय तो
उसके श्राद्ध में वहां क़ी तिथि न लेकर भारत क़ी तिथि ही लेनी चाहिए अर्थात उसकी
मृत्यु के समय भारत में जो तिथि हो, उसी तिथि में श्राद्धादि करना चाहिए।
4.
श्राद्धका अन्न साधुको नहीं देना चाहिए, केवल
ब्राहम्ण को ही देना चाहिए।
5.
घर में किसी क़ी मृत्यु होने पर सत्संग, मन्दिर
और तीर्थ- इन तीनों में शोक नहीं रखना चाहिए अर्थात इन तीनों जगह जरुर जाना चाहिए।
इनमें भी सत्संग विशेष है। सत्संग से शोक्का नाश होता है।
6.
किसी क़ी मृत्यु से दुःख होता है तो इसके दो
कारन हैं- उससे सुख लिया है, और उससे आशा रखी है। मृतात्मा क़ी शांति
और अपना शोक दूर करने के लिये तीन उपाय करने चाहिए - 1) मृतात्मा को भगवान् के
चरणों में बैठा देखें 2) उसके निमित्त गीता, रामायण, भगवत, विष्णुसहस्त्रनाम
आदि का पाठ करवाएं 3) गरीब बालकों को मिठाई बांटें।
7.
घर का कोई मृत व्यक्ति बार-बार स्वप्न में आये
तो उसके निमित्त गीता-रामायण का पाठ करें, गरीब बालकों को
मिठाई खिलायें। किसी अच्छे ब्रह्मण से गया-श्राद्ध करवाएं। उसी मृतात्मा अधिक याद
आती है,
जिसका हम पर ऋण है। उससे जितना सुख-आराम लिया है, उससे अधिक सुख-आराम
उसे न दिया जाय, तब तक उसका ऋण रहता है। जब तक ऋण रहेगा, तब तक उसकी याद आती
रहेगी।
8.
यह नियम है कि दुखी व्यक्ति ही दुसरे को दुःख
देता है। यदी कोई प्रेतात्मा दुःख दे रही है तो समझना चाहिए क़ी वह बहुत दुखी है।
अतः उसके हित के लिये गया-श्राद्ध करा देना चाहिए।
9.
कन्याएं प्रतिदिन सुबह-शाम सात-सात बार 'सीता
माता'
और 'कुंती माता' नामों का उच्चारण करें तो वे पतिव्रता होती हैं।
10.
माताएं-बहनें अशुद्ध अवस्था में भी रामनाम लिख
सकती हैं, पर पाठ बिना पुस्तक के करना चाहिए। यदी आवश्यक हो तो उन दिनों के लिये
अलग पुस्तक रखनी चाहिए। अशुद्ध अवस्था में हनुमान चालीसा स्वयं पाठ न करके पति से
पाता कराना चाहिए।
11.
अशुद्ध अवस्था में माताएं तुलसी क़ी माला से जप
न करके काठ क़ी माला से जप करें, और गंगाजी में स्नान न करके गंगाजल मंगाकर
स्नानघर में स्नान करें। तुलसी क़ी कण्ठीतो हर समय गले में रखनी चाहिए।
परमश्रद्धेय स्वामी श्रीरामसुखदासजी
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