शुद्ध कमाई का अन्न खाओ; जो
पैसा चोरी से, छल से, बेईमानी से, दुसरे के हक को मारकर आया हुआ हो, उससे मिला हुआ अन्न
बहुत दूषित होता है और बुद्धि को, सहज ही बिगाड़ देता हैं |
हर किसी के साथ न खाओ | बुरे
परमाणु तुम्हारे अन्दर आ जाएँगे |
झूँठा कभी किसी का मत खाओ | रोग
बढेगा |
नियमित भोजन करो, भूख से कुछ कम खाओं
| अपनी
प्रकृति से प्रतिकूल चीज मत खाओं |
स्वाद की दृष्टि से मत खाओं-शरीर-रक्षा के
लिए सात्विक आहार करों |
क्रोधी, कामी, वैरी, संक्रामक
रोगों से आक्रान्त, गंदे आचरणवाले, गन्दगी से सने हुए, हीन
जाति और हीन कुल के लोगो के साथ न खाओं |
ऐसी जगह मत जाओं, जहाँ कुदृष्टि पड़ती
हो |
अतिथि, रोगी, गर्भिणी
स्त्री,
गुरु, ब्राह्मण, आश्रित-जन और गौ, कुते, चींटी, कौउये
आदि को आदर से खिलाकर पीछे खाओं |
रोज बलिवैश्वदेव करके खाओं |
—श्रद्धेय हनुमानप्रसाद पोद्धार भाईजी, भगवतचर्चा पुस्तक
से, गीताप्रेस
गोरखपुर,
उत्तरप्रदेश , भारत
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