1.
रात्री सोने से पहले अपनी छाया को तीन बार
कह दे कि मुझे प्रात: इतने बजे उठा देना तो ठीक उतने बजे नींद खुल जायेगी। उस समय
जरुर उठ जाना चाहिए।
2.
जो साधक रात्री साढे ग्यारह से साढे बारह बजे तक
अथवा ग्यारह से एक बजे तक जागकर भजन-स्मरण, नाम-जप करता है, उसको
अंत समय में मूरचा नहीं आती और भगवान् क़ी स्मृति बनी रहती है।
3.
सूर्योदय और सूर्यास्त के समय सोना नहीं चाहिए।
सूर्योदय के बाद उठने से बुद्धि कमजोर होती है, और सूर्योदय से
पहले उठने से बुद्धि का विकास होता है। अतः सूर्योदय होने से पहले ही उठ जाओ और
सूर्य को नमस्कार करो। फिर पीछे भले ही सो जाओ।
4.
प्रतिदिन स्नान करते समय 'गंगे-गंगे' उच्चारण
करने क़ी आदत बना लेनी चाहिए। गंगा के इन नामों का भी स्नान करते समय उच्चारण करना
चाहिए - 'ब्रह्मकमण्डुली, विष्णुपादोदकी, जटाशंकरी, भागीरथी,जाहन्वी' ।
इससे ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश- तीनों का स्मरण हो जाता है।
5.
प्रतिदिन प्रातः स्नान के बाद गंगाजल का आचमन
लेना चाहिए। गंगाजल लेने वाला नरकों में नहीं जा सकता। गंगाजल को आग्पर गरम नहीं
करना चाहिए। यदि गरम करना ही हो तो धुप में रखकर गरम कर सकतें है। सूतक में भी
गंगा-स्नान कर सकते हैं।
6.
सूर्य को जल देने से त्रिलोकी को जल देने का
महात्मय होता है। प्रातः स्नान के बाद एक ताम्बे के लोटे में जल लेकर उसमें लाल
पुष्प या कुमकुम दाल दे और 'श्रीसूर्याय नम:' अथवा 'एहि
सूर्य सहस्रांशो तेजोराशे जगत्पते। अनुकम्पय मां भक्त्या गृहाणाध्य दिवाकर॥' कहते
हुए तीन बार सूर्यको जल दे।
7.
रोज़ प्रातः बड़ों को नमस्कार करना चाहिए। जो
प्रातः बड़ों को नमस्कार करते हैं, वे नमस्कार करने योग्य हैं।
8.
कोई हमारा चरण - स्पर्श करे तो आशीर्वाद न देकर
भगवान् का उच्चारण करना चाहिए।
9.
किसी से विरोध हो तो मन से उसकी परिक्रमा करके
प्रणाम करो तो उसका विरोध मिटता है, द्वेष-वृत्ति मिटती है। इससे हमारा वैर भी
मिटेगा। हमारा वैर मिटने से उसका भी वैर मिटेगा।
10.
कोई व्यक्ति हमसे नाराज हो, हमारे
प्रति अच्छा भाव न रखता हो तो प्रतिदिन दुबह-शाम मन इ उसकी परिक्रम करके दंडवत
प्रणाम करें। ऐसा करने से कुछ ही दिनों में उसका भाव बदल जाएगा। फिर वह व्यक्ति
कभी मिलेगा तो उसके भावों में अंतर दीखेगा। भजन-ध्यान करने वाले साधक के मानसिक
प्रणाम का दुसरे पर ज्यादा असर पड़ता है।
परमश्रद्धेय स्वामी श्रीरामसुखदासजी
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