स्नान के बिना जो पुण्यकर्म किया जाता है, वह
निष्फ़ल होता है। उसे राक्षस ग्रहण करते हैं॥
तेल लगानेके बाद, शमशान से लौटनेके
बाद,
हाजामत करने पर,(ग्रुहस्तो के लिये- स्त्रि संग होने),निंद
से उठने पर.जबतक मनुष्य स्नान नहि करता तबतक वह चाण्डाल बना रहता है॥
पुरुषो को सदा सिर के उपरसे स्नान करना
आवष्यक है॥
भोजनके बाद, रोगी रहनेपर, स्नान
नहीं करना चाहिये॥
बिना शरीर कि थकावट दूर किये और बिना मुख
धोए स्नान नहीं करना चाहीये॥
स्नान के बाद आपने अंग को तेल कि मालिश
नहि करनी चाहिये तथा गिले वस्त्रोंको झटकारना नहीं चाहिये॥
स्नान के बाद हाथ से शरीर को नहीं पोछना
चाहीये॥
स्नानके समय पहने हुए भिगे वस्त्रसे
शरीरको नहीं पोंछना चाहिये। एसा करने से शरीर कुत्तेसे चाटे हुएके समान अशुध्द हो
जाता है. जो पुन्ह स्नान करने से ही शुद्ध हो जाता हैं॥
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