यदि गंभीर हो तो किसी भी एक के हो जाओ एक
को पकड़ लो.
कभी कृष्ण कभी शिव कभी माता करोगे तो हाल
वही होगा,,
जिस प्रकार पति एक रिश्ते अनेक
"पति एक" अन्यथा
चरित्रहीन(वेश्या कह्लोगी.
एक को पकड़ो. एक को भजो. एक में निष्ठां.एक
की प्रतिस्था
चुनाव खुद करो सोच समझकर.
जिसके घर में, जिसके पूजा के
मंदिर में बहुत सारे फोटो आते हैं उसकी भक्ति अनन्य नहीं हो सकती, क्योंकि
पूजा की जगह पर इसको.... उसको.... सब देवी-देवताओं को फल फूल अक्षत चढ़ाने, प्रणाम-आरती
करने के बाद भी मन में यह भावना रहती है कि कभी ये देवता काम न आये तो वे आ जाएँगे, ये
नहीं तो वे आ जाएँगे..... इस प्रकार की भक्ति अव्यभिचारिणी नहीं, व्यभिचारिणी
भक्ति है, बदलने वाली भक्ति है।
No comments:
Post a Comment