विवाहमें मुहूर्तका महत्त्वके बारेमें
जानें तथा इसका भी शास्त्र समझ लें |
प्रातः ४ से ५ (ब्राह्ममुहूर्त, ब्राह्मकाल)
: इस कालमें अस्त होनेवाली चंद्रमाकी तरंगें प्रखर ब्राह्मतेजके लिए तथा उदित
होनेवाले अर्थात प्रकट होनेवाले सूर्यकी तेज-तरंगें शांत, संयमी क्षात्रतेजके
लिए पूरक होती हैं । यह काल प्रखर ब्राह्मतेजके लिए पूरक होता है, इसलिए
इसे ब्राह्ममुहूर्त कहते हैं ।
दोपहर ४ से ५ (गोरज काल, क्षात्रकाल)
: किसी कारणवश सवेरेका मुहूर्त यदि छूट जाए, तो ही गोरज
मुहूर्तपर विवाह करें । इस कालावधिमें अस्त होते सूर्यसे प्रक्षेपित तेजतरंगें
प्रखर क्षात्रतेजके लिए पूरक हैं, जबकि उदित होते चंद्रसे प्रक्षेपित तरंगें
शीतल,
संयमी एवं शांत रहती हैं, अतः ब्राह्मतेजके लिए पूरक हैं । यह काल
क्षात्रतेजके लिए पूरक रहता है, इसलिए इस कालमें अनिष्ट शक्तियोंके कष्टकी
आशंका अल्प रहती है । प्राचीनकालमें अधिकांश क्षत्रियोंके विवाह गोरज मुहूर्तपर
होते थे
दोपहर ५ के उपरांत (कातर काल) :
यथासंभव संध्याकालमें अथवा रातमें बहुत देरसे विवाह न करें, क्योंकि इस कालमें अनिष्ट शक्तियोंके कष्टकी आशंका
रहती है ।
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