1.
वास्तव में प्रारब्ध से रोग बहुत कम होते
हैं,
ज्यादा रोग कुपथ्य से अथवा असंयम से होते हैं, कुपथ्य छोड़ दें तो
रोग बहुत कम हो जायेंगे। ऐसे ही प्रारभ दुःख बहुत कम होता है, ज्यादा
दुःख मूर्खता से, राग-द्वेष से, खाब स्वभाव से होता है।
2.
चिंता
से कई रोग होते हैं। कोई रोग हो तो वह चिंता से बढ़ता है। चिंता न करने से रोग
जल्दी ठीक होता है। हर दम प्रसन्न रहने से प्राय: रोग नहीं होता, यदी
होता भी है तो उसका असर कम पड़ता है।
3.
मन्दिर
के भीतर स्थित प्राण-प्रतिष्ठित मूर्ती के दर्शन का जो महात्मय है, वाही
महात्मय मन्दिर के शिखर के दर्शन का है।
4.
शिवलिंग
पर चढ़ा पदार्थ ही निर्माल्य अर्थात त्याज्य है। जो पदार्थ शिवलिंग पर नहीं चढ़ा
वह निर्माल्य नहीं है। द्वादश ज्योतिलिंगों में शिवलिंग पर चढ़ा पदार्थ भी
निर्माल्य नहीं है। (निर्माल्य-ग्रहण पाप है)
5.
जिस
मूर्ती क़ी प्राणप्रतिष्ठा हुई हो, उसी में सूतक लगता है। अतः उसकी पूजा
ब्रह्मण अथवा बहन- बेटी से करानी चाहिए। परन्तु जिस मूर्ती क़ी प्राणप्रतिष्ठा
नहीं क़ी गयी हो, उसमें सूतक नहीं लगता। कारण क़ी प्राणप्रतिष्ठा बिना ठाकुरजी गहर के
सदस्य क़ी तरह ही है; अतः उनका पूजन सूतक में भी किया जा सकता है।
6.
घर
में जो मूर्ती हो, उसका चित्र लेकर अपने पास रखें। कभी बहार जाना पड़े तो उस चित्र क़ी पूजा
करें। किसी कारणवश मूर्ती खण्डित हो जाए तो उस अवस्था में भी उस चित्र क़ी ही पूजा
करें।
7.
घर
में राखी ठाकुर जी क़ी मूर्ती में प्राणप्रतिष्ठा नहीं करानी चाहिए।
8.
किसी
स्त्रोत का महात्मय प्रत्येक बार पढने क़ी जरुरत नहीं। आरम्भ और अंत में एक बार पढ़
लेना चाहिए।
9.
जहाँ
तक शंख और घंटे क़ी आवाज क़ी आवाज जाती है, वहां तक पीरोगता, शांति, धार्मिक
भाव फैलते है।
10.
कभी
मन में अशांति, हलचल हो तो 15-20 मिनट बैठकर राम-नाम का जप करो अथवा 'आगमापायिनोSनित्या:' (गीता
1/14) - इसका जप करो, हलचल मिट जायेगी।
11.
कोई
आफत आ जाए तो 10-15 मिनट बैठकर नामजप करो और प्रार्थना करो तो रक्षा हो जायेगी।
सच्चे हृदय से क़ी गयी प्रार्थना से तत्काल लाभ होता है।
परमश्रद्धेय स्वामी
श्रीरामसुखदासजी
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