Saturday 28 October 2017

प्रणाम रहस्य



*Զधे Զधे*
प्रणाम करते समय भगवान के दाहिने हाथ के सामने आपका मस्तक हो और प्रणाम हमेशा दाहिने तरफ से करें... बायें तरफ से किया प्रणाम पुर्वकृत पुण्यों का नाश करता हैं।
प्रभु जी को अष्टांग प्रणाम, और माताजी को पंचांग प्रणाम करते समय भगवान् को अपने वामअंग रख कर करना चाहिए।
एक हाथ से किया प्रणाम/एक हाथ से ली गई आरती... पुर्व पुण्यों का नाश करती हैं। ये सब आचार संहिताओं में दिया है। 
आजकल योग्य आचार्यों की कमी से यह सब गलतियां लोग कर रहे... एक दुसरे की देखा-देखी। 
और अगर कोई स्त्री पंचांग प्रणाम (घुटनों के बल) की जगह साष्टांग प्रणाम करते दिखे तो उसे रोकना अन्य माताओं का कर्तव्य है।
क्योंकि स्त्रियों के स्तनों में मातृत्व के कारण, माताओं के स्तनों का साष्टांग प्रणाम में धरती का स्पर्श धरती माता झेल नहीं सकती और रसातल की ओर जाती है।
ऐसी माताओं को साष्टांग प्रणाम से कोई लाभ नहीं... बल्कि पृथ्वी को रसातल की ओर ले जाने का महापाप जरूर लगता है।
और देख कर भी चुप रहने वालों को भी दोष लगता है। इसलिए लोगों की गलतियों को एकल बार जरूर बतायें...!
गलत प्रणाम से कुष्ठ रोग होता है !!!
१.मंदिर में ठाकुर को अपने बाये रखकर प्रणाम करना चाहिए
२. हमेशा पंचांग प्रणाम करना चाहिए
३. पूरा लेट कर प्रणाम करना हो तो कमर से ऊपर के वस्त्र पूरे उतार देने चाहिए
यहाँ अंक और अति महवपूर्ण बात स्पष्ट करनी है कि प्राय देखा जाता है कि साधक ठाकुर जी के सामने बनियान, कुर्ता, स्वेटर आदि अनेक कपडे पहने हुय, यहाँ तक की चादर, लोई ओर्ढ़े हुय ही लेटकर दंडवत परणाम कर देते है । यह भारी अपराध है, कटी के उपर शरीर के कोई न\भी वस्त्र पहनकर दंडवत करने से जो महापाप लगता है उस विषय में शास्त्र का वचन है-उतरीय वस्त्र पहने जो व्यक्ति दंडवत प्रणाम करता है वह सात जन्म तक श्वेतकुष्ठी और मुर्ख होता है
वस्त्रप्रावृतदेहस्तु यो नरः प्रणमेत माम् ।
श्वित्री स जायते मूर्खः सप्तजन्मनि भामिनि ! ॥”

४. महिला क्योंकि ऊपर के वस्त्र नहीं उतार सकती इसलिए महिला द्वारा लेटकर प्रणाम नहीं करना चाहिए
५. पुरे वस्त्र पहन कर जो पूरा लेटकर प्रणाम करता है ▶️ उसे सात जन्म तक कुष्ठ रोगी होना पड़ता है
वराह पूराण में ऐसा लिखा है-
वस्त्र आवृत देहस्तु यो नरः प्रनमेत मम
श्वित्री सा जयते मूर्ख सप्त जन्मनी भामिनी

६. गुरुदेव को सामने से
७. नदी को एवं सवारी को उधर से प्रणाम करना चाहिए, जिधर से वह आ रही हो
८. मंदिर के पीछे
९. भोजन करते समय
१०. शयन के समय - ठाकुर, गुरु, संत, वरिष्ठ या किसी को भी प्रणाम नहीं करना चाहिए|
 श्री हरिभक्ति विलास ग्रन्थ से संकलित
आचारहीनों को वेद भी पवित्र नही कर सकते।
       *जय गौर हरि*

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