Sunday 11 October 2015

दिशाबोध का लाभ



  • जो पूरब में सिर कर सोता, बुद्धि बढ़ाता ज्ञानी होता |
  • जो दक्षिण में सिर कर सोता, तन का बल दीघार्यु संजोता |
  • मस्तक पशि्चम कर जो सोता, चिन्ताओं में पड़ कर सोता |
  • जो उत्तर में सिर कर सोता, लाभ और जीवन को खोता |
  • पूर्व मुखी जो खाना खाता, वह लम्बा जीवन पाता |
  • जो दक्षिण मुख होकर खाता, भारी नाम बड़ाई पाता |
  • शौच और लघु शंका जाओ, उत्तर-दक्षिण मुख को आओ |
  • पूर्व मुखी हो सदा नहाओ, मंजन पशि्चम मुख कर आओ |
  • पूवोर्त्तर मुख जाप सम्हारो, श्वेत वस्त्र उत्तर मुख धारो |
  • पढ़ने उत्तर मुख हो जाओ, भोजन दक्षिण मुख न पकाओ |

Saturday 10 October 2015

卐• जानिए क्यों की जाती है मूर्तियों की प्राण-प्रतिष्ठा •卐

॥ हरी बोल ॥

मंदिरों में प्रतिमाओं की प्राण-प्रतिष्ठा:- पूर्णत: वैज्ञानिक प्रक्रिया

मंदिरों के निर्माण के बाद देवताओं की प्रतिमाओं की प्राण-प्रतिष्ठा की जाती है। क्या पत्थर की प्रतिमाओं में कुछ धार्मिक रस्में पूरी करने से उनमें प्राणों का संचार हो जाता है? क्या पत्थरों में जान फूंकना संभव है? आखिर क्यों प्रतिमाओं की स्थापना प्राण प्रतिष्ठा से की जाती है ?

वास्तव में यह पूर्णत: वैज्ञानिक प्रक्रिया है | विज्ञान मानता है कि धार्मिक अनुष्ठानों और मंत्रों से किसी पत्थर में प्राण नहीं डाले जा सकते हैं लेकिन यह भी आश्चर्य का विषय है कि प्राण-प्रतिष्ठा का अनुष्ठान पत्थर की प्रतिमाओं को जागृत करने के लिए ही किया जाता है।

दरअसल इस प्रक्रिया से पत्थरों में प्राण नहीं आते हैं लेकिन उसके जागृत होने, सिद्ध होने का अनुभव किया जा सकता है। इस प्रक्रिया में कई विद्वानों द्वारा प्राण प्रतिष्ठा किए जाने वाले स्थान पर वैदिक मंत्रों और ध्वनियों का नाद किया जाता है। प्रतिमा का कई तरह से अभिषेक कर उसके दोषों का शमन किया जाता है |

इससे सिद्ध होता है कि देवोपासना के लिए सनातन धर्म का एक सबल आधार मूर्ति पूजा है और इसका अंग होने के कारण मूर्ति प्रतिष्ठा भी उतना ही महत्वपूर्ण कार्य है | मूर्तियों में मंत्रों की शक्ति से जब प्राण प्रतिष्ठा होती है तो उनमें देवत्व का प्रवेश होता है जो विधिवत पूजा से फलदायी होती हैं |

यह वास्तु आधारित भी होता है | इससे प्रतिमा के आसपास और जिस स्थान पर उसकी स्थापना की जा रही है, मंत्रों और शंख-घंटियों की ध्वनि से वातावरण का दूषित रूप खत्म हो जाता है और वहाँ सकारात्मक ऊर्जा का संचार शुरू हो जाता है | जिससे उस जगह के पवित्र होने का एहसास बढ़ता है | इसे हम अनुभव भी कर सकते हैं |

मंदिर में जिस शांति का अनुभव होता है वह वैदिक मंत्रों और शंख आदि की ध्वनि से ही उत्पन्न होती है| इसे ही प्राण प्रतिष्ठा कहते हैं | इसके बाद यह मान लिया जाता है कि प्रतिमा में खुद देवता स्थापित हो गए हैं, इससे हमारे मन में उसके प्रति श्रद्धा और आस्था का भाव जागता है | जिसमें यह वातावरण सहायक होता है |

अब कोई माने या ना माने
हमें तो अत्यंत गर्व है हिंदुत्व के "सूक्ष्म विज्ञान" व आध्यात्म के ज्ञान पर .....

नम्र निवेदन है की हिंदुत्व के ज्ञान को और भी अटूट करने के लिए शेयर करने में आप भी गर्व महसूस करें।

Friday 9 October 2015

क्या वास्तव में शरीर में देवि देवता आते है


 अक्सर हमे कइ जगह देखने ओर सुनने को मिलता है कि किसी के शरीर में भैरव जी, देवि , हनुमान जी आदिदेवि देवताओं का प्रवेश होता है ।
ओर लोग अपनी समस्याओं का हल पूछने जाया करते है ।

हकीकत क्या है जानिये:--पहली बात ये हे कि जिस प्रकार हमें जानवरों के शरीर से दुर्गन्ध आया करति है, ठीक वेसे ही देवताओं को हमारे शरीर से गन्ध आती है । क्यों कि हमारा शरीर दिखता सुन्दर है जब किभीतर केवल रक्त, माँस, हड्डी, मज्जा, वीर्य, चर्बीभरी हुई है । देवताओं का शरीर अग्नि तत्व प्रधान होता है ।

दूसरी बात यह है कि किसी भी मनुष्य में इतनी शक्तिओर सामर्थ्य नहीं है कि वो देवि देवताओं का तेज सहनकर सके ।अगर वास्तव में देवि देवता आजाये तो शरीर में बम ब्लास्ट हो जायेगा ।

यहाँ तक यह तो साफ हो गया कि देवि देवता नहीं आतेहै ।

अब आता क्या है वो जानिये :--प्रथम बात आज के समय में 95% लोग देवि देवताओं के शरीर में आने का ढोंग करते है । केवल 5% ही सच्चे होतेहै । इन पाँच % में जो आता है उसे कहते है भाव ।

भाव का अर्थ मन में आने वाले अपने ईष्ट के प्रतिविचार। जब ईष्ट का ध्यान किया जाता है तो उसईष्ट देव या देवि कि तरंगे मन में उठने लगति है , जोशआने लगता है , यही जोश ओर भाव दिलाने के लिये पहलेउस व्यक्ति को संबंधित देवि देवता के भजन सुनाये जातेहै । ओर वह व्यक्ति भजनों को सुनकर अपने ईष्ट देव केरंग में रंगने लगता है । जिसे सभी लोग यही समझते हैकि इसमें बालाजी, भैरव जी आचुके है ।

 एसा भाव आप मेंभी आ सकता है आप चाहे तो । आपका आपके ईष्टदेव केप्रति अनन्य प्रेम होना चाहिये । आप जोश के साथ हनुमान चालिसा का जोर जोर से बोलकर पाठ करो,100% आपको कुछ क्षण के लिये एसा लगेगा कि आपके शरीर में हनुमान जी आ रहे है । आप दुर्गा सप्तशती का पाठ जोश में माता जी के सामने बेठ कर करो, जितनी देर तक आप पाठ करोगे उतनी देर तक आपका शरीरआपको देवि मय लगेगा ।

दूसरी बात कइ लोगों में आते तो भूत प्रेत, जिन्द है

लेकिन वो नाम देवि- देवताओं का कर दिया करते है ।ओर कई लोग केवल जनता को ठगने ओर लूटने के लियेगर्दन हिलाया करते है ।

"" तुलसी या संसार में, भाँति भाँति के लोग ।
""यही है देवि देवताओं के शरीर में आने का रहस्य ।