Tuesday 25 April 2017

शास्त्रीय मत

*ब्राह्मण जप से पैदा हुई शक्ति का नाम है,*
*ब्राह्मण त्याग से जन्मी भक्ति का धाम है।*

*ब्राह्मण ज्ञान के दीप जलाने का नाम है,*
*ब्राह्मण विद्या का प्रकाश फैलाने का काम है।*

*ब्राह्मण स्वाभिमान से जीने का ढंग है,*
*ब्राह्मण सृष्टि का अनुपम अमिट अंग है।*

*ब्राह्मण विकराल हलाहल पीने की कला है,*
*ब्राह्मण कठिन संघर्षों को जीकर ही पला है।*

*ब्राह्मण ज्ञान, भक्ति, त्याग, परमार्थ का प्रकाश है,* 
*ब्राह्मण शक्ति, कौशल, पुरुषार्थ का आकाश है।*

*ब्राह्मण न धर्म, न जाति में बंधा इंसान है,*
*ब्राह्मण मनुष्य के रूप में साक्षात भगवान है।*

*ब्राह्मण कंठ में शारदा लिए ज्ञान का संवाहक है,*
*ब्राह्मण हाथ में शस्त्र लिए आतंक का संहारक है।*

*ब्राह्मण सिर्फ मंदिर में पूजा करता हुआ पुजारी नहीं है,*
*ब्राह्मण घर-घर भीख मांगता भिखारी नहीं है।*

*ब्राह्मण गरीबी में सुदामा-सा सरल है,* 
*ब्राह्मण त्याग में दधीचि-सा विरल है।*

*ब्राह्मण विषधरों के शहर में शंकर के समान है,* 
*ब्राह्मण के हस्त में शत्रुओं के लिए परशु कीर्तिवान है।*

*ब्राह्मण सूखते रिश्तों को संवेदनाओं से सजाता है,* 
*ब्राह्मण निषिद्ध गलियों में सहमे सत्य को बचाता है।*

*ब्राह्मण संकुचित विचारधारों से परे एक नाम है,* 
*ब्राह्मण सबके अंत:स्थल में बसा अविरल राम है..*


शास्त्रीय मत

*पूर्वकाल में नारदजी ने ब्रम्हाजी से पूछा था--*
ब्रम्हन्!किसकी पूजा करने पर भगवान लक्ष्मीपति प्रसन्न होते हैं?"

ब्रम्हाजी बोले--जिस पर ब्राम्हण प्रसन्न होते हैं,उसपर भगवान विष्णुजी भी प्रसन्न हो जाते हैं।
अत: ब्राम्हण की सेवा करने वाला मनुष्य निश्चित ही परब्रम्ह परमात्मा को प्राप्त होता है।
*ब्राम्हण के शरीर में सदा ही श्रीविष्णु का निवास है।*

_जो दान,मान और सेवा आदि के द्वारा प्रतिदिन ब्राम्हणों की पूजा करते हैं,उसके द्वारा मानों शास्त्रीय पद्धति से उत्तम दक्षिणा युक्त सौ अश्वमेध यज्ञों का अनुष्ठान हो जाता है।_

*जिसके घरपर आया हुआ ब्राम्हण निराश नही लौटता,उसके समस्त पापों का नाश हो जाता है।*
_पवित्र देशकाल में सुपात्र ब्राम्हण को जो धन दान किया जाता है वह अक्षय होता है।_
*वह जन्म जन्मान्तरों में फल देता है,उनकी पूजा करने वाला कभी दरिद्र, दुखी और रोगी नहीं होता है।जिस घर के आँगन में ब्राम्हणों की चरणधूलि पडने से वह पवित्र होते हैं वह तीर्थों के समान हैं।*

_ऊँ न विप्रपादोदककर्दमानि,_
_न वेदशास्त्रप्रतिघोषितानि!_
_स्वाहास्नधास्वस्तिविवर्जितानि,_
_श्मशानतुल्यानि गृहाणि तानि।।_

*जहाँ ब्राम्हणों का चरणोदक नहीं गिरता,जहाँ वेद शास्त्र की गर्जना नहीं होती,जहाँ स्वाहा,स्वधा,स्वस्ति और मंगल शब्दों का उच्चारण नहीं होता है। वह चाहे स्वर्ग के समान भवन भी हो तब भी वह श्मशान के समान है।*

_भीष्मजी!पूर्वकाल में विष्णु भगवान के मुख से ब्राम्हण, बाहुओं से क्षत्रिय, जंघाओं से वैश्य और चरणों से शूद्रों की उत्पत्ति हुई।_

पितृयज्ञ(श्राद्ध-तर्पण), विवाह, अग्निहोत्र, शान्तिकर्म और समस्त मांगलिक कार्यों में सदा उत्तम माने गये हैं।

*ब्राम्हण के मुख से देवता हव्य और पितर कव्य का उपभोग करते हैं। ब्राम्हण के बिना दान,होम तर्पण आदि सब निष्फल होते हैं।*

_जहाँ ब्राम्हणों को भोजन नहीं दिया जाता,वहाँ असुर,प्रेत,दैत्य और राक्षस भोजन करते हैं।_


*ब्राम्हण को देखकर श्रद्धापूर्वक उसको प्रणाम करना चाहिए।*

_उनके आशीर्वाद से मनुष्य की आयु बढती है,वह चिरंजीवी होता है।ब्राम्हणों को देखकर भी प्रणाम न करने से,उनसे द्वेष रखने से तथा उनके प्रति अश्रद्धा रखने से मनुष्यों की आयु क्षीण होती है,धन ऐश्वर्य का नाश होता है तथा परलोक में भी उसकी दुर्गति होती है।_

शास्त्रीय मत

पितामह भीष्म जी ने पुलस्त्य जी से पूछा--
*गुरुवर!मनुष्य को देवत्व, सुख, राज्य, धन, यश, विजय, भोग, आरोग्य, आयु, विद्या, लक्ष्मी, पुत्र, बन्धुवर्ग एवं सब प्रकार के मंगल की प्राप्ति कैसे हो सकती है?*
यह बताने की कृपा करें।*

*पुलस्त्यजी ने कहा--*
राजन!इस पृथ्वी पर ब्राम्हण सदा ही विद्या आदि गुणों से युक्त और श्रीसम्पन्न होता है।
तीनों लोकों और प्रत्येक युग में विप्रदेव नित्य पवित्र माने गये हैं।
ब्राम्हण देवताओं का भी देवता है।
संसार में उसके समान कोई दूसरा नहीं है।
वह साक्षात धर्म की मूर्ति है और सबको मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करने वाला है।

ब्राम्हण सब लोगों का गुरु,पूज्य और तीर्थस्वरुप मनुष्य है।

शास्त्रीय मत

_पृथिव्यां यानी तीर्थानि तानी तीर्थानि सागरे ।_
_सागरे  सर्वतीर्थानि पादे विप्रस्य दक्षिणे ।।_
_चैत्रमाहात्मये तीर्थानि दक्षिणे पादे वेदास्तन्मुखमाश्रिताः  ।_
_सर्वांगेष्वाश्रिता देवाः पूजितास्ते तदर्चया  ।।_
_अव्यक्त रूपिणो विष्णोः स्वरूपं ब्राह्मणा भुवि ।_
_नावमान्या नो विरोधा कदाचिच्छुभमिच्छता ।।_

*•अर्थात पृथ्वी में जितने भी तीर्थ हैं वह सभी समुद्र में मिलते हैं और समुद्र में जितने भी तीर्थ हैं वह सभी ब्राह्मण के दक्षिण पैर में  है । चार वेद उसके मुख में हैं  अंग में सभी देवता आश्रय करके रहते हैं इसवास्ते ब्राह्मण को पूजा करने से सब देवों का पूजा होती है । पृथ्वी में ब्राह्मण जो है विष्णु रूप है इसलिए  जिसको कल्याण की इच्छा हो वह ब्राह्मणों का अपमान तथा द्वेष  नहीं करना चाहिए ।*

_•देवाधीनाजगत्सर्वं मन्त्राधीनाश्च देवता: ।_
_ते मन्त्रा: ब्राह्मणाधीना:तस्माद् ब्राह्मण देवता ।_

*•अर्थात् सारा संसार देवताओं के अधीन है तथा देवता मन्त्रों के अधीन हैं और मन्त्र ब्राह्मण के अधीन हैं इस कारण ब्राह्मण देवता हैं ।*    

_ऊँ जन्मना ब्राम्हणो, ज्ञेय:संस्कारैर्द्विज उच्चते।_
_विद्यया याति विप्रत्वं, त्रिभि:श्रोत्रिय लक्षणम्।।_

*ब्राम्हण के बालक को जन्म से ही ब्राम्हण समझना चाहिए।*
*संस्कारों से "द्विज" संज्ञा होती है तथा विद्याध्ययन से "विप्र" नाम धारण करता है।*

*जो वेद,मन्त्र तथा पुराणों से शुद्ध होकर तीर्थस्नानादि के कारण और भी पवित्र हो गया है,वह ब्राम्हण परम पूजनीय माना गया है।*

_ऊँ पुराणकथको नित्यं, धर्माख्यानस्य सन्तति:।_
_अस्यैव दर्शनान्नित्यं ,अश्वमेधादिजं फलम्।।_

*जिसके हृदय में गुरु,देवता,माता-पिता और अतिथि के प्रति भक्ति है। जो दूसरों को भी भक्तिमार्ग पर अग्रसर करता है,जो सदा पुराणों की कथा करता और धर्म का प्रचार करता है ऐसे ब्राम्हण के दर्शन से ही अश्वमेध यज्ञों का फल प्राप्त होता है।*

Friday 21 April 2017

न करने जैसी शारीरिक क्रियाएँ

सत्संग से उठते समय आसन नहीं झटकना चाहिए। ऐसा करने वाला अपने पुण्यों का नाश करता है।

जूठे मुँह पढ़ना-पढ़ाना, शयन करना, मस्तक का स्पर्श करना कदापि उचित नहीं है।

यमराज कहते हैं- 'जो मनुष्य जूठे मुँह उठकर दौड़ता और स्वाध्याय करता है, मैं उसकी आयु नष्ट कर देता हूँ। उसकी सन्तानों को भी उससे छीन लेता हूँ। जो अनध्याय के समय भी अध्ययन करता है, उसके वैदिक ज्ञान और आयु का नाश हो जाता है।'

(महाभारत, अनुशासन पर्व)

जिसके गोत्र और प्रवर अपने ही समान हों तथा जो नाना के कुल में उत्पन्न 
हुई हो, जिसके कुल का पता न हो, उसके साथ विवाह नहीं करना चाहिए।

(महाभारत, अनुशासन पर्व)

न करने जैसी शारीरिक क्रियाएँ

पुस्तकें खुली छोड़कर न जायें। उन पर पैर न रखें और उनसे तकिये का काम न लें। धर्मग्रन्थों का विशेष आदर करते हुए स्वयं शुद्ध, पवित्र व स्वच्छ होने पर ही उन्हें स्पर्श करना चाहिए। उँगली मे थूक लगाकर पुस्तकों के पृष्ठ न पलटें।

दूसरे के पहने हुए कपड़े, जूते आदि न पहनें।

(महाभारत, अनुशासन पर्व)

हाथ-पैर से भूमि कुरेदना, तिनके तोड़ना, बार-बार सिर पर हाथ फेरना, बटन टटोलते रहना – ये बुरे स्वभाव के चिह्न हैं। अतः ये सर्वथा त्याज्य हैं।
आसन को पैर से खींचकर या फटे हुए आसन पर न बैठें।

(महाभारत, अनुशासन पर्व)

न करने जैसी शारीरिक क्रियाएँ


पूर्व या उत्तर की ओर मुँह करके हजामत बनवानी चाहिए। इससे आयु की वृद्धि होती है। हजामत बनवाकर बिना नहाये रहना आयु की हानि करने वाला है।

(महाभारत, अनुशासन पर्व)

हाथ-पैर के नाखून नियमित रूप से काटते रहो। नख के बढ़े हुए मत रखो।
अपने कल्याण के इच्छुक व्यक्ति को बुधवार व शुक्रवार के अतिरिक्त अन्य दिनों में बाल नहीं कटवाने चाहिए।

सोमवार को बाल कटवाने से शिवभक्ति की हानि होती है। पुत्रवान को इस दिन बाल नहीं कटवाने चाहिए। मंगलवार को बाल कटाना मृत्यु का कारण भी हो सकता है। बुधवार को बाल, नख काटने-कटवाने से धन की प्राप्ति होती है। गुरुवार को बाल कटवाने से लक्ष्मी और मान की हानि होती है। शुक्रवार लाभ और यश की प्राप्ति कराने वाला है। शनिवार मृत्यु का कारण होता है। 
रविवार तो सूर्यदेव का दिन है, इस दिन क्षौर कराने से धन, बुद्धि और धर्म की क्षति होती है।

मलिन दर्पण में मुँह न देखें। (महाभारत, अनुशासन पर्व)
सिर पर तेल लगानि के बाद उसी हाथ से दूसरे अंगों का स्पर्श नहीं करना चाहिए।
(महाभारत, अनुशासन पर्व)

Wednesday 19 April 2017

तुम्ही हो

तुम्ही हो माता पिता तुम्ही हो,
तुम्ही हो बंधू सखा तुम्ही हो
तुम्ही हो माता पिता तुम्ही हो,
तुम्ही हो बंधू सखा तुम्ही हो
तुम्ही हो साथी तुम्ही सहारे,
कोई न अपना सिवा तुम्हारे
तुम्ही हो नैय्या तुम्ही खेवय्या,
तुम्ही हो बंधू सखा तुम्ही हो

तुम्ही हो माता पिता तुम्ही हो
तुम्ही हो बंधू सखा तुम्ही हो

जो खिल सके ना वो फूल हम हैं,
तुम्हारे चरणों की धुल हम हैं
दया की दृष्टि सदा ही रखना,
तुम्ही हो बंधू सखा तुम्ही हो

तुम्ही हो माता पिता तुम्ही हो
तुम्ही हो बंधू सखा तुम्ही हो

हरी बोल 

Tuesday 18 April 2017

Prasad

We feel happy that people are showing lot of interest in distributing prasadam to people , even poor people, in front of temples or otherwise. It is truly divine to donate food. But we are noticing the donors are ignoring something important. They are using more and more so called thermocol plates, which are die moulded for distribution of prasad.

Kindly avoid using these plates. You do a good job by distributing food but did you think what happens to the litter created because of this ? People throw hundreds of plates in dustbins around, and where does this trash go ? This so called thermocol, is actually polystyrene (a synthetic petroleum product) It is very slow to biodegrade and therefore a focus of controversy, since it is often abundant as a form of litter in the outdoor environment, particularly along shores and waterways especially in its foam form.

Please do not be a part of hurting Krishna's enviroment in the name of doing something for Krsna.
Plates made from leaves are available in markets, they don't appear beautiful as compared to these thermocol plates, but please try shifting to them. And, may Krsna be happy with your distribution of parsadam in bio degradable materials.



Also, when these plates are warmed, the styrene compound leaches into the food. The largest leaves we are able to get here are corn husks. Real plates are used here. Not all of them match as far as design goes. They are earthenware plates. If one breaks it becomes earth again real easy. And yes, there is the job of washing the plates. But it becomes more of a delight. The children love to help with the washing. They are reminded, "Who ate from this plate? Who was Krishna in the crowd?" In itself, the washing becomes an act of love and devotion. A few have expressed concerns with, "What is someone really sick eats from the plate and the germs are not properly cleaned." The answer, "If one of us is sick, then we will all be sick. But if one of us is well, we will all be well." There really is no need for such fear and concerns where there is love and devotion to the Lord. Hari Bol And I really hope the message of using other plates besides these petroleum (Monsanto-Monsters) reaches to every single person.
 


Haribol !

Tuesday 11 April 2017

शिवलिंग पर दूधः ये भक्ति नही उपाय है

धर्म का परिहासः
 जिम्मेदार कौन - ?
 शिवलिंग पर दूधः ये भक्ति नही उपाय है
सभी अपनों को राम राम
PK का नंगा एलियन हो या OMG का कांजी भाई या न्यूज चैनलों पर चिल्ला चिल्लाकर अपनी बात मनवाने की कोशिश में धर्म का मजाक उड़ा रहे तथाकिथत तर्कशास्त्री.  सब इस बात से चिंतित  नजर आते हैं कि हर दिन शिवलिंग पर हजारों लीटर दूध चढ़ाकर बर्बाद कर दिया जाता है. उसे गरीबों को दे दिया जाये तो उनका पोषण हो जाएगा.
मै उन्हें गलत नही मानता. गलत उन्हें मानता हूं जिन पर एेसी बातों को समझाने का दायित्व है. वे खुद को धर्म का विद्वान कहते हैं. फिर भी अपने जवाब से एेसे जिज्ञासुओं को संतुष्ट नही कर पाते. अंत में उन्हें नास्तिक या बेलगाम कहकर मुंह मोड लेते हैं. जहां अधिक दबाव होता है वहां भगवान की लीला कहकर अपनी छाती चौड़ी कर लेते हैं.  उनसे एक सवाल जरूर पूछा जाना चाहिये कि वे किस लीला की बात कर रहे हैं.
यदि भगवान की लीला (नाटक) से उनका तात्पर्य किसी रंगमंच या नाटक से है तो क्या भगवान को नाटक बाज मान लिया जाये. एेसे में कोई किसी नाटकबाजी पर यकीन क्यों करे.  यदि भगवान की लीला (रचना) से उनका तात्पर्य उस साइंस से है जिससे दुनिया रची गई और जिससे दुनिया चलती है तो उन्हें उस विज्ञान की बारीकियों को बताना होगा.  जिससे वे कतराते हैं.  हो सकता है उन्हें खुद उस विज्ञान की जानकारी न हो या वे उसे गुप्त रखना चाहते हैं.  कारण कुछ भी हो. परिहास का शिकार अध्यात्म को ही होना पड़ रहा है.  दिनोदिन विश्वास संदेह की भेट चढ़ रहा है. इसी कारण लोगों की भक्ति में भय घुस गया है. अधिकांश लोग पूजा पाठ आदि सदगति की बजाय खराब समय के भय से करने लगे हैं. भक्ति की बजाय पूजा पाठ को ज्योतिष, वास्तु, तंत्र के उपायों के रूप में अपनाया जा रहा है.
शिवलिंग पर जल या दूध चढ़ाना भी एेसा ही उपाय है.  ये शरीर में मौजूद पंचतत्वों को उपचारित करने की विधि है. सभी जानते हैं कि हमारा शरीर पंचतत्वों से बना है. सक्षम शरीर के लिये पंचतत्वों की उर्जाओं का संतुलन अनिवार्य है. मगर ये कम ही लोग जानते हैं कि सक्षम जीवन के लिये कई और तत्वों की अनिवार्यता होती है. वे तत्व आत्मा के संचालन में भूमिका निभाते हैं. शरीर और आत्मा के संयोग को ही जीवन कहा जाता है. दोनो में से एक भी कमजोर पड़ा तो सफलतायें नही मिलतीं.  इनमें एक तत्व है शिव तत्व.  ये अनाहत चक्र की परिधि में रहता होता है.  शिव तत्व सभी में उपलब्ध है.  इसीलिये भगवान शिव ने सभी को शिवोहम् अर्थात् मै शिव हूं कहने का अधिकार दिया है. शिव तत्व की वैज्ञानिक चर्चा हम फिर कभी करेंगे.  अभी सिर्फ इतना जान लेते हैं कि जब कोई सिद्ध कहता है कि उसने शिव के दर्शन कर लिये तो उसका अर्थ होता है कि उसके भीतर का शिवतत्व जाग गया. उसने शिवतत्व का मन माफिक उपयोग करने का रहस्य जान लिया.  अब हम बात करेंगे शिवलिंग पर दूध चढ़ाने की. इस व्याख्या के दो रास्ते हैं. एक भक्ति का दूसरा विज्ञान का. दोनो ही प्रमाणित करते हैं कि शिवलिंग पर दूध या जल भगवान शिव को खुश करने के लिये नही बल्कि खुद को उपचारित करने के लिये चढ़ाया जाता है.
पहले हम इसके वैज्ञानिक पक्ष की बात करेंगे.  शिवलिंग भगवान शिव का कोई अंग नही है. ये उनके द्वारा लोकहित में रचा गया उर्जा यंत्र है. जो आभामंडल से नकारात्मक उर्जाओं को निकालता और सकारात्मक उर्जाओं को देता है.ये ब्रह्मांड की अकेली आकृति है जो एक ही समय में नकारात्मकता हटाने और सकारात्कता स्थापित करने का काम करती है. इसकी आकृत्ति सर्वोत्तम आभामंडल की आकृत्ति वाली है. आभामंडल का सर्वोत्तम आकार उल्टे अंडे की तरह होता है. जो इत्तिफाक से लिंग जैसा भी है.  इसलिये इसे लिंग कहकर संबोधित किया गया.  इसकी रचना शिव ने की इसलिये इसे शिवलिंग कहा गया.  शिवलिंग नकारात्मकता हटाकर हमारे भीतक के शिव तत्व को जगाने वाली अध्यात्म की सर्वाधिक प्रभावशाली तकनीक है.  इसके विज्ञान पर चर्चा हम फिर कभी करेंगे.  आज इसके उपयोग की बात कर लेते हैं.  इनकी पूजा करते समय ये साधक के आभामंडल के भीतर होते हैं. सामान्य अवस्था में किसी व्यक्ति का आभामंडल 7 से 9 फीट दूर तक फैला होता है. जैसे ही हम शिवलिंग के पास जाते हैं, आभामंडल के भीतर शोधन क्रिया अपने आप शुरू हो जाती है. प्राकृतिक रूप से आभामंडल से नकारात्मक उर्जायें खींचकर जलहरी के जरिये उनकी ग्राउंडिंग कर दी जाती है. ताकि वे रुकावटी उर्जायें दोबारा लौटकर हमारे पास न आ सकें.  इसीलिये शिवलिंग पर चढ़ाये गये तरल पदार्थ सीधे नाली में बहा दिये जाते हैं. क्योंकि उनमें नकारात्मक उर्जायें बह रही होती हैं.  शिवलिंग से बह रही चीजों को छूने भर से रोग व रुकावटें पीछे लग सकती हैं.  उसे न छुवें.  आगे बढ़ने से पहले उर्जा विज्ञान का एक फार्मूला याद रख लें. वह ये कि समधर्मी उर्जायें एक दूसरे को आकर्षित करती हैं.  दूध की उर्जायें अनाहत चक्र की उर्जाओं की समधर्मी होती है. हाथ में आते ही ये अनाहत चक्र की उर्जाओं को आकर्षित करके अपने से जोड़ लेता है. शिवलिंग पर चढ़ाते समय अनाहत चक्र की नकारात्मक उर्जाओं को साथ लेकर बह जाता है. शिवलिंग उन हानिकारक विषाक्त उर्जाओं को जलहरी से बहाकर धरती के भीतर भेज देते हैं.  इस तरह शिवलिंग पर दूध चढ़ाने से अनाहत चक्र की सफाई हो जाती है. अनाहत चक्र प्रेम, दया, आनंद, करुणा, क्षमा का केंद्र है. इस पर से गंदी उर्जायें हटने से शरीर के पंच तत्वों में से वायु तत्व का जागरण होता है. जिससे दुख, तनाव, नफरत, हृदय रोग, डिप्रेशन, फ्रस्टेशन और शरीर का वायु विकार कंट्रोल होता है.  अनाहत चक्र पर शिव तत्व भी केंद्रित है. प्रदूषण हटने से वह भी एक्टिव होने लगता है. अध्यात्मिक शक्तियां जीवन को बेहतर बनाने में जुट जाती हैं.  शिवलिंग पर दूध तो बहुत लोग चढ़ाते हैं.  मगर सबको एेसा लाभ नही मिलता. क्योंकि वे इस विज्ञान से अंजान हैं. उन्हें बता दिया गया है कि इससे भगवान शिव खुश हो जाएंगे. तो वे अधिक से अधिक दूध चढ़ाने में जुटे रहते हैं. ये गलत है. अति हर चीज की बुरी होती है.  जरूरत से ज्यादा दूध चढ़ाने से नकारात्मक उर्जायें खत्म होने के बाद अनाहत चक्र की सकारात्मक उर्जायें भी निकलकर बह जाती हैं. जिससे उल्टा असर होता है. धर्म के जानकार इसे देव बाधा कहते हैं.  अनाहत चक्र की सफाई का गुण कच्चे दूध में ही होता है.  इसलिये पैकेट खोलकर चढ़ाया गया दूध बेअसर होता है. क्योंकि उसमें पाउडर वाला दूध भी मिलाया गया होता है.  दूध में पानी मिलाकर ही शिवलिंग पर चढ़ाया जाना चाहिये.  पानी जल तत्व युक्त स्वाधिष्ठान चक्र को भी साफ करता है. स्वाधिष्ठान चक्र की 70 प्रतिशत उर्जायें विशुद्धी चक्र के रास्ते सौभाग्य चक्र को जाती हैं. मनोकामनायें पूरी करने और सिद्धियां पाने के लिये इन्हीं उर्जाओं की जरूरत पड़ती है. शिवलिंग से बहकर नाली में जा रहे दूध, पानी आदि को प्रसाद के रूप में नही दिया जाता. क्योंकि इनमें भयानक रेडिएशन से भी खतरनाक नकारात्मका होती है.
अब बात करते तर्क शात्रियों के सवाल की. उनका कहना है कि दूध शिवलिंग पर चढ़ाने की बजाय गरीब बच्चों को दे दिया जाये. जिससे उनका पोषण होगा.  हर व्यक्ति को क्षमतानुसार जरूरत मंदों की मदद करनी ही चाहिये.  मगर उपचार अलग बात है और मदद करना अलग. किसी की मदद करने के लिये बिल्कुल जरूरी नही होता कि अपना उपचार न किया जाये.
सबसे खास बात जिनकी उर्जायें खराब हैं उनके हाथ से जिसे भी दूध दिया जाएगा. वही संकट में पड़ जाएगा.  क्योंकि कच्चा दूध प्राकृतिक क्रिया के मुताबिक अनाहत चक्र की नकारात्मक उर्जाओं को अपने भीतर ले ही लेगा. उसके बाद जिसके पास जाएगा, उसी के अनाहत चक्र में वे सारी उर्जायें फैला देगा.  इसे वैज्ञानिक तौर पर प्रमाणित करना चाहें तो कोई तर्क शास्त्री खुद को सामने लाये. अपने हृदय की जांच कराये. फिर किसी हृदय रोगी के हाथ से हर दिन आधा लीटर कच्चा दूध लेकर पिये. 40 दिनों बाद दोबारा हृदय की जांच कराये. वहां हृदय रोग के लक्षण मिलेंगे. शिवलिंग पर दूध चढ़ाकर खुद को उपचारित करने की जो बातें मैने लिखी हैं. उनका वैज्ञानिक प्रमाण लेना चाहें तो...  1. किसी औरा फोटोग्राफी का सहारा ले सकते हैं. दूध चढ़ाने से पहला किसी के औरा का फोटो लें. दूध चढ़ाने के तुरंत बाद लें. दोनो में बड़ा फर्क नजर आएगा. 2. जिसका बी. पी. गड़बड़ हो उसे चेक करें. दूध चढ़ाने से पहले और कुछ देर बाद का बी. पी. चेक करें. फर्क देखने को मिल जाएगा.  3. दिल की धड़कन नापें. शिव लिंग पर दूध चढ़ाने से पहले दिल की धड़कन का ग्राफ ले लें. जल चढ़ाने के बाद फिर चेक करायें. फर्क नजर आ जाएगा.  एेसे ही तमाम और वैज्ञानिक तरीके हैं जिनसे शिवलिंग पर दूध चढ़ाने के लाभ साक्षात् देखे जा सकते हैं.  आगे हम चर्चा करेंगे कि शिव जी नशे नही करते हैं. बल्कि शिवलिंग पर भांग, धतूरा और गांजा रोगों से मुक्ति के लिये चढ़ाया जाता है. तब तक की राम राम हर हर महादेव.