Sunday 27 December 2015

गौ माता कृपा केवलम,,,,,,,,


1 गौ माता जीस जगह खडी रहकर आनंद पुर्वक चैन की सांस लेती है। वहा वास्तु दोष समाप्त हो जाते है।

2 गौ माता मे तैतीस कोटी देवी देवताओं का वास है।

3 गौ माता जीस जगह खुशी से रभांने से देवी देवता पुष्प वर्षा करते है।

4 गौ माता के गले मे घंटी जरूर बांधे गाय के गले मे घंटी बजने से गौ आरती होती है।

5 जो व्यक्ति गौ माता की सेवा पुजा करता है। उस पर आने वाली सभी प्रकार की विपदाओं को गौ माता हर लेती है।

6 गौ माता के खुर्र मे नागदेवता का वास होता है। जहा गौ माता विचरण करती है। उस जगह साप बिच्छू नही आते है।

7 गौ माता के गोबर मे लक्ष्मी जी का वास होता है।

8 गौ माता के मुत्र मे गंगाजी का वास होता है।

9 गौ माता के गोबर से बने उपलो का रोजाना घर दुकान मंदिर परिसरो पर धुप करने से वातावरण शुद्ध होता सकारात्मक ऊर्जा मिलती है।

10 गौ माता के ऐक आख मे सुर्य व दुसरी आख मे चन्द्र देव का वास होता है।

11 गाय इस धरती पर साक्षात देवता है।

12 गौ माता अन्नपूर्णा देवी है कामधेनु है। मनोकामना पूर्ण करने वाली है।

13 गौ माता के दुध मे सुवर्ण तत्व पाया जाता है जो रोगो की क्षमता को कम करता है।

14 गौ माता की पुछ मे हनुमानजी का वास होता है। कीसी व्यक्ति को बुरी नजर हो जाये तो गौ माता की पुछ से झाडा लगाने से नजर उतर जाती है।

15 गौ माता की पीठ पर ऐक उभरा हुआ कुबंड होता है। उस कुबंड मे सुर्य केतु नाडी होती है। रोजाना सुबह आधा घंटा गौ माता की कुबंड हाथ फेरने से रोगो का नाश होता है

16 गौ माता का दुध अमृत है।

17 गौ माता धर्म की धुरी है।
गौ माता के बिना धर्म कि कलपना नही कि जा सकती है।

18 गौ माता जगत जननी है।

19 गौ माता पृथ्वी का रूप है।

20 गौ माता सर्वो देवमयी सर्वोवेदमयी है। गौ माता के बिना देवो वेदो की पुजा अधुरी है।

21 ऐक गौ माता को चारा खिलाने से तैतीस कोटी देवीदेवताओ को भोग लग जाता है।

22 गौ माता से ही मनुष्यो के गौत्र की स्थापना हुई है।

23 गौ माता चौदह रत्नो मे ऐक रत्न है।

24 गौ माता साक्षात मा भवानी का रूप है।

25 गौ माता के पंचगव्य के बिना पुजा पाठ हवन सफल नही होते है।

26 गौ माता के दुध घी मख्खन दही गोबर गोमुत्र से बने पंचगव्य हजारो रोगो की दवा है। इसके सेवन से असाध्य रोग मीट जाते है

27 गौ माता को घर पर रखकर सेवा करने वाला सुखी आध्यात्मिक जीवन जीता है। उनकी अकाल मृत्यु नही होती है।

28 तन मन धन से जो मनुष्य गौ सेवा करता है। वो वैतरणी गौ माता की पुछ पकड कर पार करता है। उन्हें गौलोकधाम मे वास मीलता है। गौ माता के गोबर से इधंन तैयार होता है।

29 गौ माता सभी देवी देवताओं मनुष्यो की आराध्य है इष्ट देव है।

30 साकेत स्वर्ग इन्द्र लोक से भी उच्चा गौ लोक धाम है।

31 गौ माता के बिना संसार की रचना अधुरी है।

32 गौ माता मे दिव्य शक्तिया होने से संसार का संतुलन बना रहता है।

33 गाय माता के गौवंशो से भुमी को जोत कर की गई खेती सर्वश्रेष्ट खेती होती है।

34 गौ माता जीवन भर दुध पिलाने वाली माता है। गौ माता को जननी से भी उच्चा दर्जा दिया गया है।

35 जंहा गौ माता निवास करती है। वह स्थान तिर्थ धाम बन जाता है।

36 गौ माता कि सेवा परिक्रमा करने से सभी तिर्थो के पुण्यो का लाभ मीलता है।

37 जीस व्यक्ति के भाग्य की रेखा सोई हुई हो तो वो व्यक्ति अपनी हथेली मे गुड को रखकर गौ माता को जीभ से चटाये गौ माता की जीभ हथेली पर रखे गुड को चाटने से व्यक्ति की सोई हुई भाग्य रेखा खुल जाती है।

38 गौ माता के चारो चरणो के बीच से निकल कर परिक्रमा करने से इंसान भय मुक्त हो जाता है।

39 गाय माता आनंद पुर्वक सासें लेती है । छोडती है। वहा से नकारात्मक ऊर्जा भाग जाती है। सकारात्मक ऊर्जा की प्राप्ति होती है। वातावरण शुद्ध होता है

40 गौ माता के गर्भ से ही महान विद्वान धर्म रक्षक गौ कर्ण जी महाराज पैदा हुए थे।

41 गौ माता की सेवा के लिए ही इस धरा पर देवी देवताओं ने अवतार लीये है।

42 जब गौ माता बछडे को जन्म देती तब पहला दुध बांज स्त्री को पिलाने से उनका बांजपन मीट जाता है।

43 स्वस्थ गौ माता का गौ मुत्र को रोजाना दो तोला सात पट कपडे मे छानकर सेवन करने से सारे रोग मीट जाते है।

44 गौ माता वात्सल्य भरी निगाहों से जीसे भी देखती है। उनके उपर गौकृपा हो जाती है।

45 गाय इस संसार का प्राण है।

46 काली गाय की पुजा करने से नोह ग्रह शांत रहते है। जो मन पुर्वक धर्म के साथ गौ पुजन करता है। उनको शत्रु दोषो से छुटकारा मीलता है।

47 गाय धार्मिक आर्थिक व सांस्कृतिक आध्यात्मिक दृष्टि से सर्वगुण संपन्न है।

48 गाय ऐक चलता फीरता मंदिर है। हमारे सनातन धर्म में तैतिस कोटी देवी देवता है। हम रोजाना तैतीस कोटी देवी देवताओं के मंदिर जा कर उनके दर्शन नही कर सकते पर गौ माता के दर्शन से सभी देवी देवताओं के दर्शन हो जाते है।

49 कोई भी शुभ कार्य अटका हुआ हो बार बार प्रयत्न करने पर भी सफल नही हो रहा हो तो गौ माता के कान मे कहीये रूका हुआ काम बन जायेगा।

50 जो व्यक्ति मोक्ष गौ लोक धाम चाहता हो उसे गौ व्रती बनना चाहिए ।

51 गौ माता सर्व सुखों की दातार है।
"" हे माँ........आप अनंत आपके गुण अनंत इतना मुझमे सामर्थ्य नही की मे आपके गुणो का गान कर सकु माँ........""


जय श्री कृष्णा
राधे राधे

Tuesday 3 November 2015

राम नाम से ॐ की उत्पत्ति



राम नाम से '' '' और '' क्रमशः ज्ञान वैराग्य व भक्ति के उत्पादक हैं ।
राम नाम से ॐ की उत्पत्ति
राम शब्द की बहुत ही ऊँची श्रेष्ठता है वेदों में ईश्वर का नाम ॐ कहा गया है इसी ॐ में समस्त संसार की सृष्टि प्रच्छन्न है अथार्त ॐ शब्द पर यदि गंभीरता से विचार किया जाए तो इसी के विस्तार और खंड आदि से संसार की समस्त वस्तुओं का प्रादुर्भाव हुआ है सभी इसके रूपांतर मात्र हैं
पार्वतीजी शिवजी से पूछती है जब संसार की सृष्टि ॐ से हुई है, फिर आप ॐ का जप क्यों नहीं करते?
शिवजी कहते है- सारी सृष्टि ॐ से हुई है और राम नाम से ॐ की उत्पत्ति इसलिय में राम नाम का जप करता हु।
ॐ को दूसरे प्रकार ओम से भी लिखते हैं यह रूप(ओम) उक्त ॐ का अक्षरीकृत रूप ही है ।
व्याकरण शास्त्र के द्वारा राम से ओम अथार्त ॐ उत्पन्न होता है ।
संधि के अनुसार ओम का '' अ: के विसर्ग का अक्षरीकृत रूप परिवर्तन मात्र है इस विसर्ग के दो रूप होते हैं । एक तो यह किसी अक्षर की संनिद्धि से ो हो जाता है या फिर र होता है यदि विसर्ग का रूपांतर ो न करके र किया जाए तो अ र म ही ओम का दूसरा रूप हुआ ।
तब इन अक्षरों के विपर्यय से राम स्वतः बन जायेगा अ र म को यदि र अ म ढंग से रखें और र म व्यंजनों को स्वरांत मानें तो राम बन जाता है ।
इस तरह से जब राम ॐ का रूपांतर मात्र है तो फिर राम विधि हरी हर मय भी है ।
राम और ॐ का विपर्यय इस प्रकार है :
राम = र अ म
अ र म
अ : म
अ ो म
ओम
इसी तरह ॐ का
ॐ = ओम
अ ो म
अ र म
र अ म
राम
इस तरह राम = ॐ
इस तरह जैसे ॐ ब्रह्मा,विष्णु व शिव अथार्त विधि,हरि व हर मय है उसी तरह राम भी विधि हरि हर मय है ।
देवो के देव शिवजी भी ॐ का नहीं राम नाम का जप करते है, किन्तु आज जिन्हें ॐ जप का अधिकार नहीं है(शूद्र और स्त्री) केवल अपने अहंकार की पुष्टि के लिए राम नाम को छोड़ कर ॐ का जप करते है । यही अहंकार से ॐ जप करने पर भी विनाश ही होता है ।

एक भाई ने प्रश्न किया है कि हर समय ॐ जपा जा सकता है या नहीं ?



 ॐ वैदिक मन्त्र है; इसलिये इसके जपकी स्त्रियों और शूद्रों के लिये वेद और स्मृतियों में मनाही है। बाकी सबका अधिकार है ही।
कोई-कोई ऐसा भी कहते हैं कि गृहस्थों को ॐ का जप नहीं करना चाहिये। इसका उच्चारण एकान्त, पवित्र देश में करना उत्तम है ही। मन से चाहे जब कर सकते हैं। अपवित्र अवस्था में वाणी के द्वारा उच्च स्वर से ॐ का जप नहीं करना चाहिये। मानसिक जप तो सूतक आदि अशौच में भी किया जा सकता है। उसके लिये तो कोई आपत्ति है ही नहीं।
जिनके लिए इसका निषेध है वे यदि यह समझें कि हमारा कल्याण कैसे होगा ॐ, राम, हरि, गोविन्द-ये सब परमात्मा थे ही शास्त्रीय नाम। किसी का भी उच्चारण करने से एक ही फल मिलता है। यदि का फल अधिक होता है और रामका कम होता, तब तो आपत्ति होती। तुलसीदासजी तो सब नामों से रामनामको ही श्रेष्ठ समझते हैं, किन्तु वास्तव में कोई भी कम-अधिक नहीं है। जिसको जिस नाम से लाभ मिला, उसने उसी की सर्वोपरी प्रशंसा कर दी।
मेरे विचार से तो राम, , कृष्ण, हरि, नारायण-सबके जप का एक ही फल है। इसलिये आपकी जिस नामों में रुचि हो, वही जप सकते हैं। आपको ॐ नाम से जो लाभ होगा, वही स्त्रियों को राम, गोविन्द, कृष्ण नाम के जप से हो सकता है।
---------------------------------------------------
प्रवचन-तिथि ज्येष्ठ शुक्ल 8, संवत् 2001, प्रात:काल, वटवृक्ष, स्वर्गाश्रम।

स्त्रियोंके लिये ॐ नाम लेना मना नहीं है, जप करना ही मना है।



(किसीने लिखा है कि स्त्रियोंको ॐनाम नहिं लेना चाहिये, श्रीस्वामीजी महाराज मना करते थे; परन्तु)
श्रध्देय स्वामीजी श्री रामसुखदासजी महाराजने भगवानका ॐनाम लेनेके लिये मना नहीं किया है।
कृपया बातको ठीक तरहसे समझें।
स्त्रियों और शूद्रोंको ॐ नामका जप इसलिये मना किया गया है कि यह वैदिक-मन्त्र है। वेदका अधिकार जनऊ-संस्कार होनेके बाद ही होता है।
जनेऊ-संस्कारका अधिकार द्विजाती(ब्राह्मण,क्षत्रिय,वैश्य)मात्रको ही है।
अगर संस्कार नहीं हुआ है तो पण्डितजीका बेटाभी शूद्रतुल्य माना गया है,उनको भी वेदका अधिकार नहीं है।
यथा-
जन्मना जायते शूद्र संस्काराद्द्विज उच्यते.
इसलिये जैसे स्त्रियाँ पतिका नाम नहीं लेती, पतिका नाम अटकता है, ऐसे ॐका नाम अटकता नहीं है।
यह तो भगवानका नाम है, सभीको लेना चाहिये; पर जप उन्हीको करना चाहिये जिन्होने संस्कार करा लिया है।
श्रध्दाभक्तिपूर्वक ॐनामके उच्चारणसे जो लाभ होता है, वही लाभ रामनामके उच्चारणसे भी हो जाता है।
एक बार रामनामका उच्चारण भगवानके दूसरे हजार नामोंके बराबर माना गया है।
एक बार श्रीशंकर भगवान बोले कि हे पार्वती! आओ, भोजन करलें।
तब श्रीपार्वतीजी बोली कि हे प्रभो! मेरे तो श्रीविष्णुसहस्रनामस्तोत्रंका पाठ करना बाकी है,(आप भोजन करलें,मैं पाठ करके बादमें भोजन कर लूंगी।वे नित्य श्रीविष्णुसहस्रनामस्तोत्रवाले भगवानके हजार नाम लेकर भोजन करती थीं)।
तब श्रीशंकर भगवान बोले कि
राम राम राम-इस प्रकार मैं तो इस मनोरम राममें ही रमण करता हूँ।
हे सुमुखी पार्वती! यह रामनाम हजार नामोंके समान है।
यथा-
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे।
सहस्रनाम तत्तुल्यं राम नाम वरानने॥
                              (पद्मपुराण)
श्रीशंकर भगवानकी यह बात सुनकर श्रीपार्वतीजीने एक बार रामनाम लिया और शंकर भगवानके साथ ही भोजन कर लिया।
पार्वतीजीके हृदयमें रामनाम आदिके प्रेमको देखकर श्रीशंकरजीने उनको अर्ध्दांगमें (आधे अंगमें)धारण कर लिया।
सहसनाम सम सुनि सिव बानी।
जपि जेईं पिय संग भवानी॥
हरषे हेतु हेरि हर हीको।
किय भूषन तिय भूषन तीको॥
(रामचरितमा.१।१९;)
नारदजीको तो भगवानने माँगनेपर यह वरदान ही दे दिया कि रामनाम सबसे श्रेष्ठ होगा-
राम सकल नामन्हते अधिका।
होउ नाथ अघ खगगन बधिका॥
एवमस्तु मुनि सन कहेउ
(रामचरिमा.३।४२;) आदि।
इस प्रकार भगवानके दूसरे
नामोंकी अपेक्षा रामनाम सबसे बढकर है।

प्रश्न – स्त्री को ओंकार का उच्चारण करना चाहिए या नहीं ?


उत्तर स्त्री को ॐ कारकी उपासना या उच्चारण नहीं करना चाहिए और जिस मंत्र में ॐ आता है उसका भी शास्त्रों में निषेध किया है | हम तो यहाँ इसके निषेध की प्रार्थना करते हैं | यदि कोई ना सुने तो हमारे को कोई मतलब नहीं | हमारे को ना तो कोई व्यक्तिगत लाभ अथवा हानि है | यह तो विनय के रूप में कहा गया है | वह माने या ना माने यह उनकी मर्जी है | वैदिक मन्त्रों का स्त्री के लिए निषेध है | वैदिक मन्त्रों में हरी ॐ होता है | स्त्री, शुद्र(द्विज को, जिनका जनेऊ संस्कार नहीं हुआ हो; उनको भी) कभी भी नहीं करना चाहिए | अच्छे-अच्छे विद्वानों की बातें सुनकर ही आपको कहा गया है | इतिहास-पुराण तो सुनने का ही नहीं, पढ़ने तक का अधिकार है |
शुद्र तथा स्त्री ओंकार का जप ना करें | कहीं-कहीं यह भी मिलता है की – “दंडी स्वामी ही ओंकार का जप कर सकते हैं |” किन्तु राम के नाम का उतना ही महत्व है जितना ओंकार का है | हमारे लिए तो मुक्ति का द्वार खुला हुआ है, हम क्यों ओंकार के जप की जिद करें | मैं तो कहता हूँ की – “अल्लाह-अल्लाह जिस प्रकार मुसलमान करते हैं, वे यदि प्रेम में मग्न होकर करें तो उन्हें भी उतना ही फल मिलेगा |”
तुलसीदासजी राम-नाम के उपासक थे | उन्होंने कहा- राम नाम सबसे बढ़कर है|” उन्होंने रामचरित मानस की रचना करके राम नाम को पार उतरने का साधन बता दिया | सूरदासजी ने कहा कि कृष्ण नाम सबसे बढ़कर है | ध्रुव कहेंगे की ॐ नमो भगवते वासुदेवायऔर मुसलमान कहेंगे की अल्लाह खुदा ही सबसे बढ़कर है |” जैसे कोई पानी को कहें जल, कोई कहें - आप:, कोई कहें नीर, कोई कहें वाटर या पानी, कुछ भी क्यों ना हो, अर्थ तो जल ही होगा | ऐसे ही परमात्मा के बहुत से नाम हैं कोई भी नाम लो मुक्ति मिल सकती है |
बच्चा कहता है – ‘बूतो माँ समझकर उसे दूध पीला देती है | इसी प्रकार हम ओंकार का जप ना करके राम नामका जप करेंगे, तो राम नाम के जप से हमारा उद्धार क्यों नहीं होगा ? अवश्य होगा |
श्री जयदयाल जी गोयन्दका सेठजी, गीताप्रेस गोरखपुर
जय श्री कृष्ण