Saturday 28 October 2017

महिलाओ के द्वारा कथा वाचन उचित है अनुचित



महिलाओं के द्वारा कथावाचन उचित है या अनुचित, इससे पहले इस बात पर विचार किया जाएँ कि प्राचीन परम्परा अर्थात् ऐतिह्य प्रमाण क्या है इस विषय में। सो आपको बता देवें कि २०वीं शताब्दी के अन्त तक जो परम्परा भारत में चली, उसमें महिलाओं के लिए कथावाचन के क्षेत्र में कोई स्थान नहीं था।
दूसरा बिन्दु यह कि ऐसी प्रथा प्राचीन काल के विदुषो ने इसलिए बनायी थी, क्योंकि "विद्यावतां भागवते परीक्षा" अर्थात् "विद्वानों की परीक्षा श्रीमद्भागवतशास्त्र में होती है" क्यों? क्योंकि श्रीमद्भागवत सकल दर्शनशास्त्रों विशेषतया वेदान्तदर्शन का सार स्वरूप है।
स्त्रीयों का स्वभाव प्रकृति ऐसी होती है कि वे दार्शनिकता को प्रायः रुचिकर नहीं मानती (उपनिषदो में वर्णित गार्गी, मैत्रेयी जैसे कुछ अपवादों को छोड़ देने पर)
तीसरा बिन्दु यह है कि रजस्वलावस्था/मासिकधर्म इत्यादि दशाओं से आयेदिन घिरे रहने के कारण भागवत का आनुष्ठानिक कथावाचन व्यासासनस्थ होकर उनके लिए निषिद्ध है
क्योंकि व्यासपीठ पर बैठने का वो ही अधिकारी है कि जिसका उपनयन संस्कार हुआ हों। स्त्रीयों का उपनयन संस्कार निषिद्ध है।
चौथा बिन्दु यह है कि पद्मपुराणान्तर्गत भागवतमाहात्म्य के छठवें अध्याय में भागवत के वक्ता के लक्षणों योग्यताओं का निरूपण करते समय उल्लिखित हुआ है कि "विरक्तो वैष्णवो विप्रो वेदशास्त्रविशुद्धिकृत्.." -
अर्थात् भागवत का वक्ता "वैष्णव, विरक्त, उपनयनसंस्कार से युक्त ब्राह्मण अर्थात् विप्र वेदशास्त्र आदिओ में पारंगतता को प्राप्त" होना चाहिए।
अब श्रीमद्भागवत ..२५ के अनुसार तो स्त्रीयों को वेद के अध्ययन का अधिकार ही नहीं है
--"स्त्रीशूद्रद्विजबन्धूनां त्रयी श्रुतिगोचरा इति भारतमाख्यानं कृपया मुनिना कृतम् ।।"
स्त्रीयों का वेदाध्ययन में अधिकार वर्जित है, पर पुराणों का अनुशीलन वें कर सकती है।
पर स्वकल्याणार्थ। दूसरों को प्रवचन देने के लिए नहीं, क्योकि भागवत का प्रवक्ता होने के लिए 'वेदशास्त्र में निपुणता होना' अनिवार्य है। वेद के अध्ययन का अधिकार ही जब महिलाओं को नही!
तो कैसे व्यास बनेंगी
--
भक्तिरसवेदान्तपीठाधीश्वर द्वारा दिया गया समाधान

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