*पूर्वकाल में नारदजी ने ब्रम्हाजी से पूछा था--*
ब्रम्हन्!किसकी पूजा करने पर भगवान लक्ष्मीपति प्रसन्न होते हैं?"
ब्रम्हाजी बोले--जिस पर ब्राम्हण प्रसन्न होते हैं,उसपर भगवान विष्णुजी भी प्रसन्न हो जाते हैं।
अत: ब्राम्हण की सेवा करने वाला मनुष्य निश्चित ही परब्रम्ह परमात्मा को प्राप्त होता है।
*ब्राम्हण के शरीर में सदा ही श्रीविष्णु का निवास है।*
_जो
दान,मान और सेवा आदि के द्वारा प्रतिदिन ब्राम्हणों की पूजा करते हैं,उसके
द्वारा मानों शास्त्रीय पद्धति से उत्तम दक्षिणा युक्त सौ अश्वमेध यज्ञों
का अनुष्ठान हो जाता है।_
*जिसके घरपर आया हुआ ब्राम्हण निराश नही लौटता,उसके समस्त पापों का नाश हो जाता है।*
_पवित्र देशकाल में सुपात्र ब्राम्हण को जो धन दान किया जाता है वह अक्षय होता है।_
*वह
जन्म जन्मान्तरों में फल देता है,उनकी पूजा करने वाला कभी दरिद्र, दुखी और
रोगी नहीं होता है।जिस घर के आँगन में ब्राम्हणों की चरणधूलि पडने से वह
पवित्र होते हैं वह तीर्थों के समान हैं।*
_ऊँ न विप्रपादोदककर्दमानि,_
_न वेदशास्त्रप्रतिघोषितानि!_
_स्वाहास्नधास्वस्तिविवर्जितानि ,_
_श्मशानतुल्यानि गृहाणि तानि।।_
*जहाँ
ब्राम्हणों का चरणोदक नहीं गिरता,जहाँ वेद शास्त्र की गर्जना नहीं
होती,जहाँ स्वाहा,स्वधा,स्वस्ति और मंगल शब्दों का उच्चारण नहीं होता है।
वह चाहे स्वर्ग के समान भवन भी हो तब भी वह श्मशान के समान है।*
_भीष्मजी!पूर्वकाल में विष्णु भगवान के मुख से ब्राम्हण, बाहुओं से क्षत्रिय, जंघाओं से वैश्य और चरणों से शूद्रों की उत्पत्ति हुई।_
पितृयज्ञ(श्राद्ध-तर्पण), विवाह, अग्निहोत्र, शान्तिकर्म और समस्त मांगलिक कार्यों में सदा उत्तम माने गये हैं।
*ब्राम्हण के मुख से देवता हव्य और पितर कव्य का उपभोग करते हैं। ब्राम्हण के बिना दान,होम तर्पण आदि सब निष्फल होते हैं।*
_जहाँ ब्राम्हणों को भोजन नहीं दिया जाता,वहाँ असुर,प्रेत,दैत्य और राक्षस भोजन करते हैं।_
*ब्राम्हण को देखकर श्रद्धापूर्वक उसको प्रणाम करना चाहिए।*
_उनके
आशीर्वाद से मनुष्य की आयु बढती है,वह चिरंजीवी होता है।ब्राम्हणों को
देखकर भी प्रणाम न करने से,उनसे द्वेष रखने से तथा उनके प्रति अश्रद्धा
रखने से मनुष्यों की आयु क्षीण होती है,धन ऐश्वर्य का नाश होता है तथा
परलोक में भी उसकी दुर्गति होती है।_
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