Tuesday, 11 April 2017

शिवलिंग पर दूधः ये भक्ति नही उपाय है

धर्म का परिहासः
 जिम्मेदार कौन - ?
 शिवलिंग पर दूधः ये भक्ति नही उपाय है
सभी अपनों को राम राम
PK का नंगा एलियन हो या OMG का कांजी भाई या न्यूज चैनलों पर चिल्ला चिल्लाकर अपनी बात मनवाने की कोशिश में धर्म का मजाक उड़ा रहे तथाकिथत तर्कशास्त्री.  सब इस बात से चिंतित  नजर आते हैं कि हर दिन शिवलिंग पर हजारों लीटर दूध चढ़ाकर बर्बाद कर दिया जाता है. उसे गरीबों को दे दिया जाये तो उनका पोषण हो जाएगा.
मै उन्हें गलत नही मानता. गलत उन्हें मानता हूं जिन पर एेसी बातों को समझाने का दायित्व है. वे खुद को धर्म का विद्वान कहते हैं. फिर भी अपने जवाब से एेसे जिज्ञासुओं को संतुष्ट नही कर पाते. अंत में उन्हें नास्तिक या बेलगाम कहकर मुंह मोड लेते हैं. जहां अधिक दबाव होता है वहां भगवान की लीला कहकर अपनी छाती चौड़ी कर लेते हैं.  उनसे एक सवाल जरूर पूछा जाना चाहिये कि वे किस लीला की बात कर रहे हैं.
यदि भगवान की लीला (नाटक) से उनका तात्पर्य किसी रंगमंच या नाटक से है तो क्या भगवान को नाटक बाज मान लिया जाये. एेसे में कोई किसी नाटकबाजी पर यकीन क्यों करे.  यदि भगवान की लीला (रचना) से उनका तात्पर्य उस साइंस से है जिससे दुनिया रची गई और जिससे दुनिया चलती है तो उन्हें उस विज्ञान की बारीकियों को बताना होगा.  जिससे वे कतराते हैं.  हो सकता है उन्हें खुद उस विज्ञान की जानकारी न हो या वे उसे गुप्त रखना चाहते हैं.  कारण कुछ भी हो. परिहास का शिकार अध्यात्म को ही होना पड़ रहा है.  दिनोदिन विश्वास संदेह की भेट चढ़ रहा है. इसी कारण लोगों की भक्ति में भय घुस गया है. अधिकांश लोग पूजा पाठ आदि सदगति की बजाय खराब समय के भय से करने लगे हैं. भक्ति की बजाय पूजा पाठ को ज्योतिष, वास्तु, तंत्र के उपायों के रूप में अपनाया जा रहा है.
शिवलिंग पर जल या दूध चढ़ाना भी एेसा ही उपाय है.  ये शरीर में मौजूद पंचतत्वों को उपचारित करने की विधि है. सभी जानते हैं कि हमारा शरीर पंचतत्वों से बना है. सक्षम शरीर के लिये पंचतत्वों की उर्जाओं का संतुलन अनिवार्य है. मगर ये कम ही लोग जानते हैं कि सक्षम जीवन के लिये कई और तत्वों की अनिवार्यता होती है. वे तत्व आत्मा के संचालन में भूमिका निभाते हैं. शरीर और आत्मा के संयोग को ही जीवन कहा जाता है. दोनो में से एक भी कमजोर पड़ा तो सफलतायें नही मिलतीं.  इनमें एक तत्व है शिव तत्व.  ये अनाहत चक्र की परिधि में रहता होता है.  शिव तत्व सभी में उपलब्ध है.  इसीलिये भगवान शिव ने सभी को शिवोहम् अर्थात् मै शिव हूं कहने का अधिकार दिया है. शिव तत्व की वैज्ञानिक चर्चा हम फिर कभी करेंगे.  अभी सिर्फ इतना जान लेते हैं कि जब कोई सिद्ध कहता है कि उसने शिव के दर्शन कर लिये तो उसका अर्थ होता है कि उसके भीतर का शिवतत्व जाग गया. उसने शिवतत्व का मन माफिक उपयोग करने का रहस्य जान लिया.  अब हम बात करेंगे शिवलिंग पर दूध चढ़ाने की. इस व्याख्या के दो रास्ते हैं. एक भक्ति का दूसरा विज्ञान का. दोनो ही प्रमाणित करते हैं कि शिवलिंग पर दूध या जल भगवान शिव को खुश करने के लिये नही बल्कि खुद को उपचारित करने के लिये चढ़ाया जाता है.
पहले हम इसके वैज्ञानिक पक्ष की बात करेंगे.  शिवलिंग भगवान शिव का कोई अंग नही है. ये उनके द्वारा लोकहित में रचा गया उर्जा यंत्र है. जो आभामंडल से नकारात्मक उर्जाओं को निकालता और सकारात्मक उर्जाओं को देता है.ये ब्रह्मांड की अकेली आकृति है जो एक ही समय में नकारात्मकता हटाने और सकारात्कता स्थापित करने का काम करती है. इसकी आकृत्ति सर्वोत्तम आभामंडल की आकृत्ति वाली है. आभामंडल का सर्वोत्तम आकार उल्टे अंडे की तरह होता है. जो इत्तिफाक से लिंग जैसा भी है.  इसलिये इसे लिंग कहकर संबोधित किया गया.  इसकी रचना शिव ने की इसलिये इसे शिवलिंग कहा गया.  शिवलिंग नकारात्मकता हटाकर हमारे भीतक के शिव तत्व को जगाने वाली अध्यात्म की सर्वाधिक प्रभावशाली तकनीक है.  इसके विज्ञान पर चर्चा हम फिर कभी करेंगे.  आज इसके उपयोग की बात कर लेते हैं.  इनकी पूजा करते समय ये साधक के आभामंडल के भीतर होते हैं. सामान्य अवस्था में किसी व्यक्ति का आभामंडल 7 से 9 फीट दूर तक फैला होता है. जैसे ही हम शिवलिंग के पास जाते हैं, आभामंडल के भीतर शोधन क्रिया अपने आप शुरू हो जाती है. प्राकृतिक रूप से आभामंडल से नकारात्मक उर्जायें खींचकर जलहरी के जरिये उनकी ग्राउंडिंग कर दी जाती है. ताकि वे रुकावटी उर्जायें दोबारा लौटकर हमारे पास न आ सकें.  इसीलिये शिवलिंग पर चढ़ाये गये तरल पदार्थ सीधे नाली में बहा दिये जाते हैं. क्योंकि उनमें नकारात्मक उर्जायें बह रही होती हैं.  शिवलिंग से बह रही चीजों को छूने भर से रोग व रुकावटें पीछे लग सकती हैं.  उसे न छुवें.  आगे बढ़ने से पहले उर्जा विज्ञान का एक फार्मूला याद रख लें. वह ये कि समधर्मी उर्जायें एक दूसरे को आकर्षित करती हैं.  दूध की उर्जायें अनाहत चक्र की उर्जाओं की समधर्मी होती है. हाथ में आते ही ये अनाहत चक्र की उर्जाओं को आकर्षित करके अपने से जोड़ लेता है. शिवलिंग पर चढ़ाते समय अनाहत चक्र की नकारात्मक उर्जाओं को साथ लेकर बह जाता है. शिवलिंग उन हानिकारक विषाक्त उर्जाओं को जलहरी से बहाकर धरती के भीतर भेज देते हैं.  इस तरह शिवलिंग पर दूध चढ़ाने से अनाहत चक्र की सफाई हो जाती है. अनाहत चक्र प्रेम, दया, आनंद, करुणा, क्षमा का केंद्र है. इस पर से गंदी उर्जायें हटने से शरीर के पंच तत्वों में से वायु तत्व का जागरण होता है. जिससे दुख, तनाव, नफरत, हृदय रोग, डिप्रेशन, फ्रस्टेशन और शरीर का वायु विकार कंट्रोल होता है.  अनाहत चक्र पर शिव तत्व भी केंद्रित है. प्रदूषण हटने से वह भी एक्टिव होने लगता है. अध्यात्मिक शक्तियां जीवन को बेहतर बनाने में जुट जाती हैं.  शिवलिंग पर दूध तो बहुत लोग चढ़ाते हैं.  मगर सबको एेसा लाभ नही मिलता. क्योंकि वे इस विज्ञान से अंजान हैं. उन्हें बता दिया गया है कि इससे भगवान शिव खुश हो जाएंगे. तो वे अधिक से अधिक दूध चढ़ाने में जुटे रहते हैं. ये गलत है. अति हर चीज की बुरी होती है.  जरूरत से ज्यादा दूध चढ़ाने से नकारात्मक उर्जायें खत्म होने के बाद अनाहत चक्र की सकारात्मक उर्जायें भी निकलकर बह जाती हैं. जिससे उल्टा असर होता है. धर्म के जानकार इसे देव बाधा कहते हैं.  अनाहत चक्र की सफाई का गुण कच्चे दूध में ही होता है.  इसलिये पैकेट खोलकर चढ़ाया गया दूध बेअसर होता है. क्योंकि उसमें पाउडर वाला दूध भी मिलाया गया होता है.  दूध में पानी मिलाकर ही शिवलिंग पर चढ़ाया जाना चाहिये.  पानी जल तत्व युक्त स्वाधिष्ठान चक्र को भी साफ करता है. स्वाधिष्ठान चक्र की 70 प्रतिशत उर्जायें विशुद्धी चक्र के रास्ते सौभाग्य चक्र को जाती हैं. मनोकामनायें पूरी करने और सिद्धियां पाने के लिये इन्हीं उर्जाओं की जरूरत पड़ती है. शिवलिंग से बहकर नाली में जा रहे दूध, पानी आदि को प्रसाद के रूप में नही दिया जाता. क्योंकि इनमें भयानक रेडिएशन से भी खतरनाक नकारात्मका होती है.
अब बात करते तर्क शात्रियों के सवाल की. उनका कहना है कि दूध शिवलिंग पर चढ़ाने की बजाय गरीब बच्चों को दे दिया जाये. जिससे उनका पोषण होगा.  हर व्यक्ति को क्षमतानुसार जरूरत मंदों की मदद करनी ही चाहिये.  मगर उपचार अलग बात है और मदद करना अलग. किसी की मदद करने के लिये बिल्कुल जरूरी नही होता कि अपना उपचार न किया जाये.
सबसे खास बात जिनकी उर्जायें खराब हैं उनके हाथ से जिसे भी दूध दिया जाएगा. वही संकट में पड़ जाएगा.  क्योंकि कच्चा दूध प्राकृतिक क्रिया के मुताबिक अनाहत चक्र की नकारात्मक उर्जाओं को अपने भीतर ले ही लेगा. उसके बाद जिसके पास जाएगा, उसी के अनाहत चक्र में वे सारी उर्जायें फैला देगा.  इसे वैज्ञानिक तौर पर प्रमाणित करना चाहें तो कोई तर्क शास्त्री खुद को सामने लाये. अपने हृदय की जांच कराये. फिर किसी हृदय रोगी के हाथ से हर दिन आधा लीटर कच्चा दूध लेकर पिये. 40 दिनों बाद दोबारा हृदय की जांच कराये. वहां हृदय रोग के लक्षण मिलेंगे. शिवलिंग पर दूध चढ़ाकर खुद को उपचारित करने की जो बातें मैने लिखी हैं. उनका वैज्ञानिक प्रमाण लेना चाहें तो...  1. किसी औरा फोटोग्राफी का सहारा ले सकते हैं. दूध चढ़ाने से पहला किसी के औरा का फोटो लें. दूध चढ़ाने के तुरंत बाद लें. दोनो में बड़ा फर्क नजर आएगा. 2. जिसका बी. पी. गड़बड़ हो उसे चेक करें. दूध चढ़ाने से पहले और कुछ देर बाद का बी. पी. चेक करें. फर्क देखने को मिल जाएगा.  3. दिल की धड़कन नापें. शिव लिंग पर दूध चढ़ाने से पहले दिल की धड़कन का ग्राफ ले लें. जल चढ़ाने के बाद फिर चेक करायें. फर्क नजर आ जाएगा.  एेसे ही तमाम और वैज्ञानिक तरीके हैं जिनसे शिवलिंग पर दूध चढ़ाने के लाभ साक्षात् देखे जा सकते हैं.  आगे हम चर्चा करेंगे कि शिव जी नशे नही करते हैं. बल्कि शिवलिंग पर भांग, धतूरा और गांजा रोगों से मुक्ति के लिये चढ़ाया जाता है. तब तक की राम राम हर हर महादेव.

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