Tuesday, 3 November 2015

कहना समझना



महत्पूर्ण यह नहीं की क्या कहा जा रहा है
अपितु
यह अधिक महत्पूर्ण है की क्या समझा जा रहा है
उलटी चाल चली दुनिया में ताते जीव खबराय रे !!
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जयपुर के एक राजा थे नाम नही लेंगे, उनको एक महाभारत की कथा सुनाई गयी
कथा कहने वाले पंडितजी ( ग्रस्ति ) थे पंडित जी ने सोचा राजा बहुत धनवान है और घर मे भी हाथ तंग चल रहा सो राजा के यहाँ से जो दक्षिणा मिलेगी उससे बहुत दिन तक गुजारा चलता रहेगा पंडितजी ने बड़े भाव से महाभारत की कथा कही पोथी वही रख कर आ गए।
राजा ने भी अपने परिवार सहित कथा सुनी पर दक्षिणा के रूप में कुछ दिया नही। कथा कहे हुए महीना बीत गया पर राजा के यहाँ से कोई खबर नही आई
एक दिन ब्राह्मणी ने कहा की राजा के घर आप कथा तो कह आये पर दक्षिणा के रूप में राजा ने कुछ दिया नही और पोथी भी राजा के यहाँ पर ही रख कर आये। ब्राह्मण ने कहा पोथी इसलिए रख आया की जब राजा दक्षिणा के लिए बुलाएंगे तब ले आऊंगा पर , शायद राजा प्रजा के काम- काज में व्यस्त रहते है इसलिए भूल गए होंगे पर आज तुमने याद दिला दिया तो आज राजा के यहाँ मैं खुद ही चला जाता हूँ ,
ब्राह्मण राजा के , राज महल में पहुंचे सबसे पहले राज महल मे , राजकुमारी मिली , राजकुमारी ने पंडितजी को प्रणाम किया और कहा पंडजी आपने बहुत कृपा की महाभारत कथा सुना कर आप ने तो हमारी आखँ ही खोल दी पहले सुना दी होती तो हमारा कल्याण हो जाता ,
पंडितजी ने कहा , अच्छा बेटी ! तुमने क्या सुना महाभारत की कथा में ?
"बोले पंडीजी ! दाऊजी अपनी बहिन सुबद्रा जी से बहुत प्रेम करते थे पर दाऊजी ने सोचा की अभी मेरी बहिन बहुत भोली है , अधिक स्नेह के कारण उन्होंने विवाह की कोई खास चिंता की नही उसी बीच सुभद्राजी अर्जुन के साथ भाग गयी।
अब हमारे माता पिता भी हमारे विवाह के लिए कोई ख़ास सोच नही रहे है तो अब मैं भी कोई योग्य राजकुमार देख कर उनके साथ भाग जाउंगी।
पंडितजी ने अपना सिर पिटा की हे राम ! इसने पूरी महाभारत कथा से एक यही शिक्षा ली।
पंडित जी आगे बड़े और रानी मिली ,
रानी ने प्रणाम कर के कहा , महारज ! आप पहले कथा कहते तो मेरा तो भाग्य ही बदल जाता पर अब तो बहुत समय निकल गया और मेरी जवानी भी ढल गयी।
पंडित जी बोले अच्छा , रानी जी ! कहो ! आपने महाभारत की कथा से क्या शिक्षा ली ?
"बोले महाराज ! द्रोपदी के पांच पति थे पांच विवाह हुए इसलिए वो पंच कन्या में आ गयी और मैं तो अंधेरे में रह गयी , एक पति से ही संतुष्ट रह गयी।
पंडितजी रानी की बात सुन कर चुप चाप जल्दी जल्दी पाँव उठाने लगे और मुख से राम राम कहते
आगे बड़े और अब राजा का पुत्र राजकुमार मिला।
राजकुमार पंडितजी को प्रणाम करते हुए कहने लगा , पंडितजी ! आपने महाभारत की कथा सुना कर हमारे भाग्य का रास्ता ही खोल दिया ,
पंडित जी " अच्छा ! आपने क्या प्रेरणा ली ?
बोले महारज ! कंस सब तरह से राज गद्दी के योग्य था पर उनके पिता ने उनको नालायक जान कर राज गद्दी, सोप नही रहे थे , तब उसने अपने पिता उग्रसेन को कारागृह में बंध कर अपने बल के आधार पर राज गद्दी पर बैठ गया , अब मैं भी सोच रहा हूँ की कुछ षडियंत्र करके पिता जी को हटा कर मैं भी राज गिद्दी पर विराजित हो जाऊ।
पंडित जी के मन में खिन्नता होने लगी की , अरे ! ये क्या दुस्स प्रभाव पड़ा |
पंडितजी विचार करते करते राज दरबार में पहुंचे जहा राजा विराज रहे थे , राजा ने राज गद्दी से उठ कर पंडितजी का सत्कार करते हुए कहा आईये पंडितजी आपने महाभारत कथा सुना कर हमारा बहुत सारा धन खर्च होने से बचा दिया पंडित जी खिन्न भाव से बोले अच्छा ! महाराज आपने महाभारत की कथा से क्या प्रेरणा ली ?
"बोले महाराज ! आज तक हम बिना सोचे समझे ही अपना धन लुटाते रहे पर जब से महाभारत कथा सुनी तब से हमारी तो बुद्धि ही ठिकाने आ गयी हमारा बहुत सारा धन खर्च होने से बच गया
अच्छा ! वो कैसे ?
 बोले जब  कौरवो की सभा में शांतिदूत बन कर श्री कृष्ण पधारे तब दुर्योधन ने कहा केशव ! बिना उद्ध के एक सुई के ( नोक ) के बराबर भी पांडवो को भूमि देनेवाला नही हूँ , अब पांडवो को कुछ चाहिए तो युद्ध कर ले......।
और अब आप को भी कुछ दक्षिणा चाहिए तो हमसे युद्ध कर लो फिर जो चाहो जो ले जाओ
पंडितजी ने कहा महाराज ! आप हमारी पोती वापिस कर लीजिये
जान बची तो लाखों पाये !
लोट के बुद्धू घर को आये !!
ये हकीकत घटना है जयपुर के राजा की....!
पर उसका परिणाम क्या होता है ये नही विचारते ,
क्या महाभारत ग्रन्थ में यही शिक्षा है? जो अच्छाईओ को छोड़ बुराईयो का संग्रह करे ? जिसे पंचम वेद कहा गया है उस में जीव के कल्याण के सिवाय कुछ है ही नही |
जिसमे से गीता जैसा  शास्त्र  निकला  ? जो समय को साक्षी रख कर भगवान ने प्रत्येक जीव के कल्याण के लिए मुक्ति का मार्ग बताया आज वो ग्रथ घर मे रखने से लोग कतराते है की महाभर जैसा ग्रथ घर में  रखेंगे तो कही हमारे घरमे महाभारत न छिड़ जाये पर फिर भी आज हर परिवार में जंग  छिड़ी हुई है , कही बाप बेटे के बीच तो कहि सास बहु के बीच , कही भाई - भाई के बीच तो कही पति - पत्नी के बीच .. इद्यादि सब जंग में फसे हुए है कोई बचा हुआ नही  है।
 { जय जय श्री राधे}

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