Saturday, 6 January 2018

राहू - केतु

= एक कथा के अनुसार . . समुद्र मंथन से निकले " अमृत " को जब " भगवान् विष्णु " मोहिनी का रूप धरकर देवताओं को पिला रहे थे - तब एक " राहू " नामक राक्षस - देवताओं का रूप धरकर अमृत का पान करने लगा - तो सूर्यदेव और चंद्रदेव ने उसे पहचान कर " भगवान् विष्णु " को इशारा कर दिया - भगवान् विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से राहू का मस्तक धड़ से अलग कर दिया - क्योकि राहू अमृत पान कर चुका था - अतः वह अमर हो गया - सर को राहू और धड़ को केतु कहा जाता है . .
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= राहू - केतु . . जन्मकुंडली में हमेशा एक दुसरे के आमने - सामने . रहते है - तथा 180 अंश की रेखीय दूरी पर रहते हुए सूर्य के चक्कर लगाते है . .
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= राहू - केतु . . मान्यता के अनुसार . . कन्या राशि " राहू " की और मीन राशि " केतु " की होती है = एक राशि पर दोनों लगभग डेढ़ वर्ष तक रहते है -
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= जन्मकुंडली में " राहू " की महादशा 18 वर्ष की और " केतु " की महादशा 7 वर्ष की होती है . . .
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= कुछ ज्योतिषियों के अनुसार " राहू " - " वृष " राशि में उच्च का और " वृश्चिक " राशि में नीच का होता है = कुछ के अनुसार " राहू " - " मिथुन " में उच्च का और " धनु " में नीच का होता है -
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= " केतु " - उच्च और नीच - ठीक " राहू " से विपरीत होता है . . .
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= " राहू " से दादा का विचार और " केतु " से नाना का विचार किया जाता है . . .
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= " राहू " - जन्मकुंडली में . . दुःख , दुर्भाग्य , आकस्मिक संकट , साहस , राजनीति , चिंता , विलासिता , अनुसंधान , धोखा , पाप कर्म , छल- कपट, मद्यपान आदि चीजों का अध्ययन किया जाता है - " नेताओं " और " नेतागिरी " का विचार भी " राहू " की स्थिति से किया जाता है . . .
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= " राहू " क्योंकि छाया ग्रह है - अतः यह जिस ग्रह की राशि मे बैठता है - उसी के अनुसार फल देता है . . जैसे " वृष " या " तुला " राशि में बैठने पर " शुक्र " ग्रह के अनुसार फल देगा . .
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= राहु और केतु के कारण ही कालसर्प दोष निर्मित होता है . .
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= राहु का तान्त्रिक मंत्र - ऊं भ्रां भ्रीं भ्रौं स: राहवे नम: . . . 18000 जाप
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= केतु का तान्त्रिक मंत्र- ऊं स्‍त्रां स्‍त्रीं स्‍त्रौं स: केतवे नम: . . 17000 जाप
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