Friday, 13 April 2018

पूजा में कलश स्थापना की वैज्ञानिकता



वैज्ञानिक ज्ञान को प्रतीकों में बांधकर धार्मिक आस्था में ओत प्रोत कर देना हिंदू धर्म की विशेषता है। हिंदू रीति के अनुसार जब भी कोई पूजा होती है तब मंगल कलश की स्थापना अनिवार्य होती है बड़े यज्ञ अनुष्ठान में पुत्रवती सधवा महिलाएं बड़ी संख्या में मंगल कलश लेकर शोभायात्रा में निकलती है उसे समय सृजन एवं मातृत्व दोनों की पूजा एक साथ होती है ।

पूजन के समय प्रायः उच्चारण किया जाने वाला मंत्र स्वयं स्पष्ट है -
कलशस्य मुखे विष्णु कण्ठे रुद्र समाश्रिताः,
मुलेतस्य स्थितो ब्रह्मा मध्ये मात्र गणा स्मृता।
कुक्षोतु सागरा सर्वे सप्त द्विपा वसुंधरा, ऋग्वेदो यजुर्वेदो सामवेदो अथर्वणा: अंगेशच सहिता सर्वे कलशन्तु समाश्रिताः।।
अर्थात सृष्टि के नियामक विष्णु रुद्र और ब्रह्मा त्रिगुणात्मक शक्ति लिए इस ब्रह्मांड रूपी कलश में व्याप्त हैं समस्त समुद्र द्वीप वसुंधरा ब्रह्मांड के संविधान चारों वेद इस कलश में स्थान लिए हैं इसका वैज्ञानिक पक्ष यह है कि जहां इस कटका ब्रह्मांड दर्शन हो जाता है जिससे शरीर रूपी घट से तादात्म्य बनता है वही तांबे के पात्र में जल विद्युत चुंबकीय उर्जावान बनता है । ऊंचा नारियल का फल ब्रह्मांड ऊर्जा (कॉस्मिक एनर्जी ) का संवाहक बनता है जैसे विद्युत ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए बैटरी या कोषा होता है वैसे ही मंगल कलश ब्रह्मांडीय उर्जा संकेंद्रित करके उसे बहुगुणित कर आसपास विकिरित करने वाली एकीकृत कोषा है जो वातावरण को दिव्य बनाती है कच्चे सूत्रों का दक्षिणावर्ती वाला ऊर्जा वाले को धीरे-धीरे चारों ओर वर्तुलाकार संचालित करता है संभवत सूत्र अर्थात जो मौली या कलावा बांधा गया है वह विद्युत कुचालक होने के कारण ब्रह्मांड धाराओं का रोकता है ।

इसीलिए मंगल कलश को सर्व प्रथम स्थान प्रदान किया गया है।

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