चातुर्मास अर्थात 4 महीने की अवधि . .
जो आषाढ़ शुक्ल एकादशी से प्रारंभ होकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक चलती है . .
जो आषाढ़ शुक्ल एकादशी से प्रारंभ होकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक चलती है . .
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श्रावण . भाद्रपद . आश्विन और कार्तिक . . चातुर्मास के प्रारंभ को
'देवशयनी एकादशी' कहा जाता है और अंत को 'देवोत्थान एकादशी' .
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इन चार मास में विवाह संस्कार . जातकर्म संस्कार . गृह प्रवेश आदि सभी
मंगल कार्य निषेध माने गए हैं . . लेकिन इन दिनों में धार्मिक अनुष्ठान . .
जाप तप का अपना ही मह्त्व है . .
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इन चार मास में हमारी पाचनशक्ति कमजोर पड़ती है . . तथा भोजन और जल में
बैक्टीरिया की तादाद भी बढ़ जाती है . . अतः इस समय में दूध, शकर, दही,
तेल, बैंगन, पत्तेदार सब्जियां, नमकीन या मसालेदार भोजन, मिठाई, सुपारी,
मांस और मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिये . श्रावण में पत्तेदार सब्जियां
यथा पालक, साग इत्यादि, भाद्रपद में दही, आश्विन में दूध, कार्तिक में
प्याज, लहसुन और उड़द की दाल आदि का त्याग करना चाहिये . .
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चातुर्मास में गुड़ त्याग से मधुर स्वर प्राप्त होता है . तेल त्याग से
पुत्र-पौत्र आदि की प्राप्ति होती है और अंग-प्रत्यंग सुंदर हो जाते हैं . .
कड़वे तेल त्याग से शत्रु का नाश होता है . . घी के त्याग से सौंदर्य मिलता
है . .शाक एवं पत्रों के त्याग से पकवान की प्राप्ति होती है . .
दधि-दुग्ध त्याग से वंशवृद्धि होती है . . चातुर्मास्य में जो व्यक्ति
उपवास करते हुए नमक का त्याग करता है, उसके सभी कार्य सफल होते हैं . .
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= जो मनुष्य केवल शाकाहार करके चतुर्मास व्यतीत करता है, वह धनी हो जाता है . .
= जो मनुष्य चतुर्मास में प्रतिदिन तारे देखने के बाद मात्र एक बार भोजन करता है, वह धनवान, रूपवान और गणमान्य होता है .
= जो मनुष्य चतुर्मास में एक दिन का अंतर करके भोजन करता है, वह बैकुंठ जाने का अधिकारी बनता है . .
= जो मनुष्य तीन रात उपवास करके चौथे दिन भोजन करने का नियम साधता है, वह पुनर्जन्म नहीं लेता . .
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