॥ हरी बोल ॥
मंदिरों में प्रतिमाओं की प्राण-प्रतिष्ठा:- पूर्णत: वैज्ञानिक प्रक्रिया
मंदिरों के निर्माण के बाद देवताओं की प्रतिमाओं की प्राण-प्रतिष्ठा की जाती है। क्या पत्थर की प्रतिमाओं में कुछ धार्मिक रस्में पूरी करने से उनमें प्राणों का संचार हो जाता है? क्या पत्थरों में जान फूंकना संभव है? आखिर क्यों प्रतिमाओं की स्थापना प्राण प्रतिष्ठा से की जाती है ?
वास्तव में यह पूर्णत: वैज्ञानिक प्रक्रिया है | विज्ञान मानता है कि धार्मिक अनुष्ठानों और मंत्रों से किसी पत्थर में प्राण नहीं डाले जा सकते हैं लेकिन यह भी आश्चर्य का विषय है कि प्राण-प्रतिष्ठा का अनुष्ठान पत्थर की प्रतिमाओं को जागृत करने के लिए ही किया जाता है।
दरअसल इस प्रक्रिया से पत्थरों में प्राण नहीं आते हैं लेकिन उसके जागृत होने, सिद्ध होने का अनुभव किया जा सकता है। इस प्रक्रिया में कई विद्वानों द्वारा प्राण प्रतिष्ठा किए जाने वाले स्थान पर वैदिक मंत्रों और ध्वनियों का नाद किया जाता है। प्रतिमा का कई तरह से अभिषेक कर उसके दोषों का शमन किया जाता है |
इससे सिद्ध होता है कि देवोपासना के लिए सनातन धर्म का एक सबल आधार मूर्ति पूजा है और इसका अंग होने के कारण मूर्ति प्रतिष्ठा भी उतना ही महत्वपूर्ण कार्य है | मूर्तियों में मंत्रों की शक्ति से जब प्राण प्रतिष्ठा होती है तो उनमें देवत्व का प्रवेश होता है जो विधिवत पूजा से फलदायी होती हैं |
यह वास्तु आधारित भी होता है | इससे प्रतिमा के आसपास और जिस स्थान पर उसकी स्थापना की जा रही है, मंत्रों और शंख-घंटियों की ध्वनि से वातावरण का दूषित रूप खत्म हो जाता है और वहाँ सकारात्मक ऊर्जा का संचार शुरू हो जाता है | जिससे उस जगह के पवित्र होने का एहसास बढ़ता है | इसे हम अनुभव भी कर सकते हैं |
मंदिर में जिस शांति का अनुभव होता है वह वैदिक मंत्रों और शंख आदि की ध्वनि से ही उत्पन्न होती है| इसे ही प्राण प्रतिष्ठा कहते हैं | इसके बाद यह मान लिया जाता है कि प्रतिमा में खुद देवता स्थापित हो गए हैं, इससे हमारे मन में उसके प्रति श्रद्धा और आस्था का भाव जागता है | जिसमें यह वातावरण सहायक होता है |
अब कोई माने या ना माने
हमें तो अत्यंत गर्व है हिंदुत्व के "सूक्ष्म विज्ञान" व आध्यात्म के ज्ञान पर .....
नम्र निवेदन है की हिंदुत्व के ज्ञान को और भी अटूट करने के लिए शेयर करने में आप भी गर्व महसूस करें।
मंदिरों में प्रतिमाओं की प्राण-प्रतिष्ठा:- पूर्णत: वैज्ञानिक प्रक्रिया
मंदिरों के निर्माण के बाद देवताओं की प्रतिमाओं की प्राण-प्रतिष्ठा की जाती है। क्या पत्थर की प्रतिमाओं में कुछ धार्मिक रस्में पूरी करने से उनमें प्राणों का संचार हो जाता है? क्या पत्थरों में जान फूंकना संभव है? आखिर क्यों प्रतिमाओं की स्थापना प्राण प्रतिष्ठा से की जाती है ?
वास्तव में यह पूर्णत: वैज्ञानिक प्रक्रिया है | विज्ञान मानता है कि धार्मिक अनुष्ठानों और मंत्रों से किसी पत्थर में प्राण नहीं डाले जा सकते हैं लेकिन यह भी आश्चर्य का विषय है कि प्राण-प्रतिष्ठा का अनुष्ठान पत्थर की प्रतिमाओं को जागृत करने के लिए ही किया जाता है।
दरअसल इस प्रक्रिया से पत्थरों में प्राण नहीं आते हैं लेकिन उसके जागृत होने, सिद्ध होने का अनुभव किया जा सकता है। इस प्रक्रिया में कई विद्वानों द्वारा प्राण प्रतिष्ठा किए जाने वाले स्थान पर वैदिक मंत्रों और ध्वनियों का नाद किया जाता है। प्रतिमा का कई तरह से अभिषेक कर उसके दोषों का शमन किया जाता है |
इससे सिद्ध होता है कि देवोपासना के लिए सनातन धर्म का एक सबल आधार मूर्ति पूजा है और इसका अंग होने के कारण मूर्ति प्रतिष्ठा भी उतना ही महत्वपूर्ण कार्य है | मूर्तियों में मंत्रों की शक्ति से जब प्राण प्रतिष्ठा होती है तो उनमें देवत्व का प्रवेश होता है जो विधिवत पूजा से फलदायी होती हैं |
यह वास्तु आधारित भी होता है | इससे प्रतिमा के आसपास और जिस स्थान पर उसकी स्थापना की जा रही है, मंत्रों और शंख-घंटियों की ध्वनि से वातावरण का दूषित रूप खत्म हो जाता है और वहाँ सकारात्मक ऊर्जा का संचार शुरू हो जाता है | जिससे उस जगह के पवित्र होने का एहसास बढ़ता है | इसे हम अनुभव भी कर सकते हैं |
मंदिर में जिस शांति का अनुभव होता है वह वैदिक मंत्रों और शंख आदि की ध्वनि से ही उत्पन्न होती है| इसे ही प्राण प्रतिष्ठा कहते हैं | इसके बाद यह मान लिया जाता है कि प्रतिमा में खुद देवता स्थापित हो गए हैं, इससे हमारे मन में उसके प्रति श्रद्धा और आस्था का भाव जागता है | जिसमें यह वातावरण सहायक होता है |
अब कोई माने या ना माने
हमें तो अत्यंत गर्व है हिंदुत्व के "सूक्ष्म विज्ञान" व आध्यात्म के ज्ञान पर .....
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